“गीतिका”
रे माँ तेरे आँचल का जब कोई पारावार नहीं
जननी तेरी यादों बिन अब कोई शाम सवार नहीं
जब तक थी तू माँ आँगन में तबतक ही तो बचपन था
देकर गई आशीष अनेका पर अब वह घरबार नहीं।।
रोज रोज तेरी थपकी जब लोरी गाने आती थी
आँखें नम थी नींद लिए पर तेरे जैसा दुलार नहीं।।
क्या रिश्ता क्या नभ की बारिस क्या कोयल की रागिनी
अभी अभी तो धुंध उड़ी थी सावन की बौछार नहीं।।
बात बात पर हँस देती थी खड़ा आज उसी बाग में
कड़वी नीम दूर जा बैठी शीतलता का संचार नहीं।।
खैर, बता क्या बना हुआ है भोजन तेरे भंडार में
चंदा मामा कहाँ गए हैं क्यों ले आते उपहार नहीं।।
गौतम आज मातृ दिवस पर क्या लिक्खे कुछ बोल तो
किसको माने मुखड़ा तेरा जब तुकांत तक प्यार नहीं।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी