गुरु दक्षिणा
‘चल ओए जग्गेया ! गड्डी से उतरकर पिछले टायरों में पत्थर लगा दे ! मैं जरा हल्का होकर आता हूं’ । करतार ने दो-चार सेल्फ मारकर ट्रक का ईंजन बंद किया और नीचे उतरकर उस जगह का मुआइना करने लगा कि ज़मीन लोडिंड ट्रक का भार उठाने लायक है भी या नहीं ।
‘मैं जट यमला पगला दीवाना हो रब्बा…..’ ऊंची आवाज में गाते हुए करतार लोहे की रॉड टायरों पर मारकर उनमें हवा का प्रैशर चैक करने लगा ।
‘ओए तुझे सुणया नहीं ..?? टौणा हो गया है क्या ? करतार की आवाज़ में हल्का गुस्सा उतर आया था ।
‘आया उस्ताद !अभी आया!’ जग्गी ट्रक से उतरने लगा । हड़बड़ाहट में पैर सीट से यूँ उलझा कि ज़मीन पर औंधे मुँह गिरने से बाल-बाल बचा । मगर खुद को बचाने में उसके दोनों हाथ मट्टी से सन गए । झटपट हाथों को झाड़कर उसकी निगाहें टायरों के पीछे लगाने के लिए पत्थरों को तलाशने लगी। एक पत्थर मिल भी गया । मन ही मन एक खुराफाती ख़्याल आया कि करा उठाकर दे मारे इस पत्थर को करतार के सर पर … थोड़े देर याद करेगा अपनी अम्मा को सर पकड़ कर….. मुआ जब देखो डांटता रहता है..खाणे पड़ा रहता है बेवजह….!
‘क्या हुआ बे ? मिला नहीं पत्थर तुझे?? बड़ा निकम्मा है तू तो!!! करतार ने जंगल को जाते-जाते अचानक पलटकर जग्गी को देखा।
‘मिल गया उस्ताद ..मिल गया.. अभी लगा देता हूँ..’
जग्गी बुरी तरह सकपका गया मानो करतार ने जग्गी के मन में आए ख़्याल को जान लिया हो । भागते हुए जग्गी ने पत्थर उठाया और टायर के पीछे लगा दिया।
करतार ने ट्रक कहाँ लाकर रोका था , जग्गी को उस जगह का कुछ भी अंदाज़ा नहीं था । एकदम सुनसान सड़क और सड़क के दोनों तरफ ऊँचे-ऊँचे पेड़,घनी झाड़ियाँ। ऊपर से जंगली जानवरों के होने का खतरा । डर के मारे जग्गी की तो घिग्गी बंध गई थी।
वह उचक-उचक के देखकर यह सुनिश्चित कर रहा था कि अगर कोई जंगली जानवर उस पर झपटे तो वह जान बचाने के लिए करतार की तरफ भाग सके । डर गया था जग्गी बुरी तरह से और डरना लाज़मी भी तो था इतना घना जंगल और वो ठहरा मासूम बच्चा।
जग्गी एक चट्टान पर जाकर बैठ गया था और जग्गी के मन में डर। यकायक उसके कानों में कुछ आवाज़ें पड़ी। सूखे पत्तों की चरमर..चरमर..जैसे जंगल की तरफ से उसकी ओर कोई चीज़ बढ़ रही हो। जग्गी फूर्ति से उठकर करतार की तरफ भागने को तैयार था कि उसके कंधे पर किसी चीज़ ने ज़ोरदार झपट्टा मारा।
‘उस्ताद…उस्ताद…बचाओ…’
‘हा हा हा हा.. तू तो बड़ा डरपोक है बे.. शेर दा बच्चा बन जा.. शेर दा….।’
करतार ने डर से कांपते हुए जग्गी की पीठ ठोकी । जग्गी की तो जैसे जान ही निकलने वाली थी । हलक सूख गया था । पसीने की बूँदे माथे पर चिहूँककर उसके डर को बयां कर रही थी । इतना तो वह तब भी नहीं डरा था जब एक बार सपने में उसने काली चुड़ैल को देख लिया था जो उसकी छाती पर बैठ कर उसका गला दबाने ही वाली थी ।
जग्गी ने दोनों तरफ के पत्थरों को हटा दिया ।
‘आ जा चले जग्गेया अभी बघेरी बहुत दूर है’ कहते हुए करतार ड्राइवर सीट वाली ताक्की खोलते हुए ट्रक में चढ़ गया।
ट्रक ड्राइवर करतार की उम्र लगभग पचास-पचपन वर्ष थी । ठिगना कद, रंग धूप में रहकर लगभग काला हो गया था, रोबदार चेहरा , बड़ी-बड़ी मूछें, माथे पर दाईं तरफ एक गहरे घाव का निशान, शायद कभी टांके लगे होंगे। क्या पता कभी किसी ट्रक वाले के साथ झगड़ा हुआ हो । उसके कंधे पर नीले रंग का तंबा हमेशा रहता। कभी उसकी पगड़ी बना लेता तो कभी यूं ही कंधों पर सजाए रखता ।
गंदे-गीले हाथ उसी से पोंछता। बीड़ी पी-पीकर दांतों का रंग काला हो चुका था । करतार जब भी कभी हँसता तो यूँ लगता मानो मुँह में दाँत न हो कोयले के छोटे छोटे अधजले टुकड़े हो । सर के अधिकतर बाल सफेदी लिए उसकी उम्र की चुगली कर रहे थे जिन पर वह भोलू नाई की दुकान पर जाकर रंग चढ़वाता था ।
करतार ने ट्रक स्टार्ट किया । लोडिंग ट्रक धीरे धीरे बघेरी की तरफ बढ़ने लगा ।
‘गड्डी जांदिए छलांगा मारदी….मैंनूं याद आदीं मेरे यार दी…’ करतार अपने मोटे गले से लय में गाने की पूरज़ोर कोशिश कर रहा था।
गाड़ी लोडिड थी। गाड़ी का ईंजन चढ़ाई में पूरा ज़ोर लगाकर काम कर रहा था ये उसकी आवाज़ से पता चल रहा था । उस वक्त शाम के तीन बजे थे। पास ही की एक विद्यालय में छुट्टी होने पर बच्चों की भीड़ सड़क पर निकल आई थी । विद्यार्थी आपस में मस्ती करते, हँसी-ठिठोली करते जा रहे थे। हर बच्चे के गले में उनके आइडेंटिटी कार्ड लटक रहे थे। पीठ पर बैग उठाए मस्तमौला बचपन । कुछ बस का इंतजार कर रहे थे तो कुछ पैदल अपने यारों के साथ घर की ओर बढ़ रहे थे। छोटों बच्चों को उनके परिजन लेने आए थे। बहुत सुंदर लग रहे थे सब के सब। गज़ब की ऊर्जा से भरे।
बच्चों को देखकर जग्गी के चेहरे पर मीठी मुस्कान तैर आई थी । ट्रक की ताक्की के शीशे से झाँकता बालमन उन बच्चों में खुद को तलाश कर रहा था। उन की हँसी-खुशी में अपना वज़ूद ढ़ूँढ़ रहा था ।
‘जग्गेया ! एक बीड़ी तो दे सुलगाकर’ करतार को बीड़ी पीने का बड़ा मन कर रहा था।
जग्गी अभी भी ताक्की से सड़क पर जा रहे बच्चों को देख रहा था।
उसका मासूम मन तो उन बच्चों के साथ मस्ती करने निकल चुका था।
‘ओऐ छोकरे !ध्यान कहां है तेरा? बीड़ी दे मुझे जल्दी’
‘अच्छा उस्ताद !अभी देता हूं ‘ जग्गी सामने वाली सैल्फ पर बीड़ी का बंडल ढूंढने लगा। वहाँ रखी अखबारों को एक तरफ हटाकर बीड़ी बंड़ल बमुश्किल खोजा । माचिस की तीली से बीड़ी जलाने की कोशिश की । चलती गाड़ी में हिचकोले खाने से माचिस की तीली नहीं जल पाई । दोबारा कोशिश की तो तीली टूटकर नीचे गिर गई ।
करतारा चला तो गाड़ी रहा था मगर ध्यान जग्गी पर था ।
‘ओए खोतेयां ! तुझे कुछ आता भी है करने …
हाथ में पकड़ रखी है ये अपनी अम्मा ! मुंह में डाल इसे तब माचिस से सुलगाकर दे मुझे…जल्दी कर…निकम्मा कहीं का…।
करतार की आँखों में जैसे खून उतर आया था।
‘पर उस्ताद मैं बीड़ी नहीं पीता’
‘पीता नहीं तो पीनी पड़ेगी.. ऐसे नहीं बन
जाना तू बड़ा डरैबर..’
करतार ने एक तीखा मोड़ काटने के बाद सटैरिंग को सीधा करते हुए कहा ।
जग्गी ने न चाहते हुए भी बीड़ी अपने होठों में फंसाई। माचिस की तीली को अपनी दोनों हथेलियों को जोड़कर बनाई गोलाकृति में जलाया । धीरे-धीरे होठों में दबाई बीड़ी को जलती तीली के पास लाकर सुलगाने की कोशिश करने लगा ।
‘मार अब एक ज़ोरदार कश तब जाकर सुलगेगी ये तेरी …..’
करतार ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा । मासूम जग्गी ने जैसे ही एक जोरदार कश मारा तो यूं लगा मानो गर्म धुंए का एक गुब्बार उसके फेफड़ों में जा घुसा हो । आंखों में पानी भर आया । मुँह का स्वाद बिगड़ गया । मानो उसने नीम के सौ पत्तों को एक साथ चबा डाला हो । बीड़ी करतार को थमाते ही जग्गी काफी देर तक खांसता रहा। करतार ट्रक चलाते चलाते कनखियों से जग्गी को देखकर चोरी-चोरी हँसता रहा।
बेचारा जग्गी आंखों में आंसू लिए बाहर की ओर देख रहा था। मानो जैसे सड़क पर गुजर रहे किसी अपने को खोज रहा हो जैसे कोई उसका अपना गुम हो गया हो जो उसे करतार की कैद से मुक्त कराकर अपने साथ ले जाऐगा।
जग्गी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी जिंदगी इस तरह बदल जाएगी । परागपुर गांव का रहने वाला जग्गी अपने मां बाप की सबसे बड़ी संतान था। गांव के ही स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था कि स्कूल बीच में ही छोड़ना पड़ा । कारण रहा पिता सुखिया की असमय मौत। सुखिया को शराब की लत लग गई थी । जब देखो नशे में धुत रहता था.. बेवड़ा कहीं का…। दिहाड़ी लगाकर जो कमाता उसकी दारू पी जाता।
गांव-बेड़ में सब उसे गालियां बकते , सुधर जाने की अकल देते मगर वह कहां माना। उल्टा गाली-गलोच पर उतर आता। माँ-बहन की गालियाँ भला कौन सुनता। एक-दो बार तो पत्नी ने पिटने से बचाया था उसे।
जब लोगों ने उसे काम बंद किया तो दारू के लिए बीवी के गहने तक बेच डाले।और पैसों की ज़रूरत पड़ी तो पुश्तैनी ज़मीन को चौधरी के पास गिरवी रख दिया । चौधरी तो था ही अव्वल दर्जे का चोर। ज्यादा बीघा ज़मीन गिरवी लेकर भी थोड़े पैसे देता था और फिर ब्याज पर ब्याज लगाकर सारी ज़मीन ऐंठ लेता था ।
सुक्खू यानि सुखिया मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का गुज़ारा करता था । धीरे-धीरे उसने मिस्त्री का काम भी सीख लिया था। इलाके में उसका नाम होने लगा था । हर जगह उसके काम की तारीफ होती थी।मगर मिस्त्री धन्नू को सुक्खू की बढ़ती पूछ से ईर्ष्या होने लगी थी । उसका काम तो लगभग ठप्प ही हो गया था।
एक शाम काम खत्म होने पर धन्नू सुखिया के पास पहुँच गया वह उसके काम की तारीफ करके उसे रिझाने लगा । धन्नू ने सुखिया को शराब का लालच देकर एक शाम अपने घर ले गया । पतीला भर कर मांस भी पका रखा था । सुक्खू को धन्नू की संगत पसंद आने लगी । मुफ्त की दारू , मुफ्त का मीट । कई दिन इसी तरह चलता रहा सुक्खू हर रोज नशे में धुत्त होकर घर पहुँचता । जरा जरा सी बात पर बिगड़ने लगता हद तो तब हो गई जब उसने पत्नी व बच्चों को पीटना शुरू कर दिया ।
एक शाम धन्नू ने सुक्खू की शराब में न जाने क्या चीज़ मिलाकर पिला दी कि उसे दूसरे दिन ही होश आया। उसके बाद शराब पीने की जो लत लगी उसे चाह कर भी वह छोड़ नहीं पाया ।
धन्नू जान बुझकर काम का बहाना बनाकर दूसरे गाँव चला गया। सुक्खू का काम-धंधा सब हाथ से जाता रहा । उसने नियमित तौर पर काम पर जाना छोड़ भी दिया। सुबह से ही शराब पीना शुरू कर देता । घर आई खुशहाली भी गुम हो गई । गरीबी ने ऐसा रंग दिखाया कि दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए ।
उस दिन काफी बारिश हो रही थी। शाम का खाना पक रहा था कि गांव के भोलाराम ने जग्गी और उसकी मां को खबर दी कि सुखिया गांव के पीछे वाली ढ़ांक से नीचे गिर गया है । उन बेचारों पर तो मानो जैसे बिजली गिर गई थी । दोनों बारिश में नंगे पांव ढ़ांक की तरफ भागे ।साथ में 2-4 गांव वाले भी । जग्गी की बहनें भी पीछे पीछे गिरते लुढ़कते ढ़ांक तक पहुंच गई । जब तक सुखिया को ढ़ांक से ऊपर लाया जाता तब तक प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
जग्गी पढ़ने में बुरा नहीं था। उसका सपना था कि बारहवीं कक्षा पास करते ही फौजी बन कर भारत मां की सेवा करेगा। गांव के दो-तीन लड़के फौज में भर्ती हुए थे । जब भी वह छुट्टियाँ काटने घर आते जग्गी उनके पास जाकर घंटों बतियाता । उनसे पूछता रहता कि कैसे वह भी उन जैसा सिपाही बनकर मातृभूमि की रक्षा कर सकता है। फौजी लड़के जग्गी को अपनी नौकरी के बारे में विस्तृत जानकारी देते कि कैसे-कैसे वे फौज में भर्ती हुए। उनकी दिनचर्या क्या रहती है…
दुर्गम स्थानों पर उनकी तैनाती होने पर किन किन चुनौतियाँ का सामना करना पड़ता है… गणतंत्र व स्वतंत्रता दिवस आदि मौकों पर होने वाली परेड़ व बहादुरी पर मिलने वाले वीरता पुरस्कारों के बारे में बताते । जग्गी उनकी एक-एक बात बड़े चाव से सुनता।
जग्गी को सेना की वर्दी बहुत अच्छी लगती थी । वह अक्सर सपने में देखा करता कि वह बंदूक थामे सरहद पर तैनात है । दुश्मन पर कड़ी नजर रखे हुए सीमा पर मुस्तैद सेना का एक जवान जिस पर देश को फख्र है । जो शहादत का जाम पीने के लिए तैयार है ।
वह बड़ा होकर अपना सपना साकार करने की कोशिश करता भी मगर सुखिया इस तरह पूरे परिवार को मंझधार में छोड़कर चला जायेगा यह किसी ने नहीं सोचा था । जग्गी का सपना टूटकर बिखर गया था। उसका पाठशाला जाना बंद हो गया ।
उसकी मां गांव में जाकर जूठे बर्तन मांजती , रोजगारी महिलाओं के बच्चों की देखभाल करके चार पैसे कमाती। मगर जग्गी को माँ का इस तरह काम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था । वो नहीं चाहता था कि उसकी माँ दर-दर भटके , लुच्चे दोटके के गिद्ध- भेड़िए मानसिकता वाले लोगों के फर्श साफ करती रहे।उनके जूठे बर्तन मांजे। मगर वह क्या करता मजबूर था ।
एक दिन उसने कहा भी कि ‘मां! मत जाया कर दूसरों के घर काम करने । मैं खुद कमा लूंगा’ ।
मां ने कहा ‘ज़हर दे दूं तुझे और तेरी बहनों को’
कुछ देर तक चुप्पी छाई रही । फिर मां जग्गी को पकड़कर सुबकने लगी । बोली ‘कसम खा कि कभी नशा नहीं करेगा। अपने बापू की तरह हमें बेसहारा नहीं छोड़ेगा दर दर की ठोकरें खाने को।’
मां ने ही उसे करतार के पास भेजा था कि कुछ सीख जाए तो कल चार पैसे कमा कर परिवार का सहारा बनेगा । और कोई चारा भी तो नहीं था । करतार उनका दूर का रिश्तेदार था ।
‘फटाककक.’ जोरदार आवाज हुई। जग्गी को लगा जैसे किसी ने ट्रक पर बम फोड़ दिया ।
‘ओहो…साला… टायर को भी अभी पंचर होना था ।’
करतार ने ट्रक साइड में लगाया।
‘सयापा….पता नहीं किस का थोबड़ा देखा था आज सुबह सुबह…।’ करतार झल्लाया।
‘नीचे उतर जा लाटसाहब ! टायर बदलने में मदद कर मेरी..बाबू नहीं है तू ..’ ड्राइवर सीट उठा कर करतार ने टूलबॉक्स से जैक और एक लोहे की रॉड निकाली और ट्रक से नीचे उतरा। जग्गी ने दूसरी ताक्की से उतरकर झट से सड़क किनारे एक पत्थर ढूंढ़ा और ट्रक के पिछले टायर के नीचे लगा दिया ।
करतार ने जब यह देखा तो हल्का मुस्कुरा दिया कि लड़का इतना भी बुद्धू नहीं है । घनचक्कर नहीं है उस कल्लू के लड़के जैसा जो पिछली बार उसके साथ था । खोते ने आठ-दस महीने भी लगाए पर सीखा कुछ नहीं ।ना स्टैरिंग क्लिरिंग का अता पता, न गियर बदलने का अंदाजा, ना गाड़ी के पुरजों से आने वाली आवाजों पर ध्यान ,ना कभी गाड़ी के बोनट पर खुश होकर कपड़ा मारा कभी..। बस एक नंबर का आलसी । चला गया है अब किसी दूसरी गाड़ी पर । वहाँ भी अपना टाइम ही गवांएगा । ड्राइवर बनने से तो रहा ।’ पर जग्गी में करतार को संभावनाएं दिख रही थी।
करतार एक नंबर का ड्राइवर था। उसे गाड़ी की पूरी समझ थी ।एक-एक चीज़ का पता । चलाता तो अपने मालिक की गाड़ी था पर रखरखाव ऐसा मानो उसकी अपनी गाड़ी हो । अपना रिज़क समझता था गाड़ी को। दोनों टैम भगवान को धूपबत्ती करना उसकी दिनचर्या में शामिल था। सफर शुरु करने से पहले दोनों हाथ जोड़कर कुलदेवी माँ नैना देवी जी को नमस्कार करने के बाद ही ट्रक के स्टैरिंग को हाथ लगाता था ।
ड्राईविंग उसी कमाई का साधन थी । इसी पेशे से उसने अपनी तीन बेटियों को पढ़ाया-लिखाया दो की तो शादी भी कर दी । अपना दो मंजिला मकान बना लिया था। इतना तो सरकारी मुलाज़िम भी नहीं बचा पाता जितना वह बचा लेता ।
जैक ट्रक के नीचे फिट कर करतार पंचर हुए टायर के नटों को खोलने लगा।
‘देख ले ओ जग्गेया! यह सब करना पड़ता है ड्राइवर को । धूल में सड़ना पड़ता है । कालिख पुत जाती है हाथ मुँह पर। भूत-प्रेत बन जाते है। तब जाकर बनते हैं ड्रैवर ! बोल मंजूर है यह सब तुझे??’ करतार रॉड पर अपना पूरा भार डालकर नेट खोलते हुए बोला ।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद जग्गी बोला ‘हां उस्ताद ! मुझे मंजूर है ..मैं बनूंगा ड्राइवर..मगर एक अच्छा ड्राइवर ..जो बीड़ी सिगरेट नहीं पीता हो..जो तंबाकू गुटखा नहीं खाता हो..वो वाला.. पैसा कमाऊँंगा ..अपनी मां से लोगों के झूठे बर्तन नहीं धुलवाऊंगा । पैसा पैसा जोड़कर चौधरी से अपनी पुश्तैनी जमीन भी वापस ले लूंगा।’
जग्गी की बातें सुनकर करतार सन्न रह गया । मासूम दिल के भाव शब्द बनकर फूट पड़े थे।
‘शाबाश जग्गेया! तू तो शेरदिल निकला! मैं सिखाऊंगा तुझे डरैबरी । बस तू अपना जज्बा कायम रखना ।’ करतार ने जोशीले अंदाज में कहा तो जग्गी की हिम्मत बढ़ गई ।
जल्द ही दोनों टायर बदलकर बघेरी की तरफ बढ़ गए । करतार को जग्गी में अपना अतीत नजर आने लगा था । उस पर जब जिम्मेदारियां पड़ी थी तो उसने भी ड्राईविंग ही सीखी थी । गरीबी में पल रहे परिवार के लिए वरदान बन गया था वह । धीरे-धीरे सारा कर्ज़ उतार कर परिवार को अच्छी स्थिति ले आया था करतार। मगर जग्गी की तरह शरीफ़ और भोंदू नहीं था वो । पर दोनों की स्थितियां लगभग एक जैसी थी।
जग्गी को ट्रेन करने का जिम्मा अब करतार ने ले लिया था । बघेरी से जब गरमौड़ा की तरफ चलता तो वहाँ से स्वारघाट वाली चढ़ाई में जग्गी को स्टैरिंग थमाता और खुद साथ बैठकर ड्राईविंग की सारी बारीकियाँ समझाता। कैसे गाड़ियों को पास देना है ? ब्रेक कब और कितनी लगानी है? एक्सीलरेटर पर कितना दबाव देना है ? ट्रैफिक में कैसे चलना है आदि …
सुबह-शाम ढ़ाबे पर खाना खाने रुकते वहां करतार जग्गी को अपने अनुभवी ड्राइवर दोस्तों से मिलाता । धीरे धीरे अब जग्गी का दायरा बढ़ने लगा था और साथ ही साथ बढ़ने लगा था उसकी ड्राइविंग का ज्ञान ।
उसने महसूस किया कि ज्यादातर ड्राइवरों को नशे की लत ने जकड़ रखा है । गांजा , अफीम , बीड़ी, सिगरेट ,शराब जो मिले सब । सबका एक ही मानना की गाड़ी चलानी है तो यह सब करना ही पड़ता है मगर जग्गी को इन बातों में जरा भी सच नहीं दिखता था। हालांकि कुछ ऐसी भी ड्राइवर थे जो बिना नशे के अच्छा काम कर रहे थे । अच्छी पैसा बचा रहे थे।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। और एक दिन आया की जग्गी पूरा ड्राइवर बन चुका था । खुद ही गाड़ी बघेरी सीमेंट प्लांट से वापस बरमाणा लाने में सक्षम।
करतार की मेहनत रंग लाई थी। बहुत खुश था करतार। मगर एक दुःख अवश्य सताने लगा था उसे। जग्गी से दूर होने का दुःख ।
जग्गी को अब स्वतंत्र रुप से किसी दूसरे मालिक की गाड़ी चलानी थी। उसने ड्राईविंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर दिया था।
‘उस्ताद ! आपने मुझे ड्राइवर बनाया ।आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।’ जग्गी बोला।
‘ओए तनवाद कैसा जग्गेया ? मेहनत तो खुद तैने ही की है।’ करतार ने जग्गी को बाहों में समेट लिया ।
‘पर अपने उस्ताद को भूल मत जाना ! जब कभी आमने सामने होंगे तो हार्न मार लेना या फिर हांक मारकर बुला लेना ।’
‘अरे नहीं उस्ताद !आपको कैसे भूल सकता हूं । अगर अनजाने में मुझसे कोई भूल चूक हो गई हो तो माफ करना।’ हाथ जोड़ते हुए जग्गी बोला ।
‘अरे माफी कैसी जग्गेया! तू तो मेरे बेटे जैसा है !’ बोलते बोलते करतार खांसने लगा । खांसी ऐसी की करतार की आँखें लाल हो गई । जग्गी ने झट से ट्रक के अंदर रखी पानी की बोतल लाकर करतार की ओर बढ़ाई।
दो-चार घूंट पानी पीने के बाद करतार सामान्य हो पाया।
‘लगता है फिर से डॉक्टर को दिखाणा पड़ना। प्राण ले लेगी नहीं तो किसी दिन तेरे उस्ताद की ये खसमखाणी।’ करतार बोला।
‘उस्ताद !अगर आप से कुछ मांगना चाहता हूं तो आप मना तो नहीं करोगे ना ! आपने मुझे अभी बेटा कहा है ।’जग्गी ने कहा।
‘आज तुझे किसी बात की मनाही नहीं ..जान भी मांगेगा ..तो वो भी हँस कर दूंगा ..बोल क्या मांगता है।’ करतार ने ऊँची आवाज में कहा ।
‘तो वादा करो उस्ताद कि आज के बाद बीड़ी ,सिगरेट , शराब को आप हाथ नहीं लगाओगे ।’ जग्गी ने करतार की आंखों में आंखें डाल कर पूरे विश्वास के साथ हक जताते हुए कहा।
करतार पहली बार जग्गी के सामने खुद को असहज महसूस करने लगा । जैसे जग्गी उसके बेटा जैसा नहीं उसका बाप हो। थोड़ी देर चुप्पी छाई रही। करतार ने जेब में हाथ डाला । माचीस और बीड़ी का बंड़ल निकालकर नीचे खाई में जोर लगा कर फेंक दिया ।
‘ले यार जग्गेया!आज के बाद सब बंद ।’ जग्गी की आंखों में खुशी के आंसू थे ।
वह भावुक हो चुके करतार से लिपट गया ।
साथ साथ रहने का आज उनका आखरी दिन था।
जग्गी को कुछ दिनों बाद दूसरा ट्रक मिल गया। यह ट्रक प्रदेश की दूसरी सीमेंट फैक्टरी में माल ढुलाई के लिए लगा था । तमाम प्रक्रियाओं के बाद जग्गी का ड्राईविंग लाइसेंस बनकर तैयार था।
अब जग्गी के पास चलाने के लिए नए मालिक का नया नया ट्रक था । नया नया रूट था । और दिल में था उत्साह और परिवार के लिए कुछ कर दिखाने की ललक। जग्गी ने करतार की हर हिदायत को ध्यान में रखते हुए पूरी लगन से ड्राइविंग की । उसे बहुत सी नई चीज़ें सीखने को मिली। अच्छी आमदनी पाकर ट्रक मालिक ने उसकी तनख्वाह में इजाफा कर दिया ।
देखते ही देखते चार साल बीत गए। एक रात करतार ढ़ाबे में खाना खाने रूका था। वहीं पर उसके ड्राइवर दोस्त भी थे। उनमें से एक जग्गी के गांव से भी था ।
बातों ही बातों में पता चला कि जग्गी ने अच्छी रकम कमाकर चौधरी के पास गिरवी रखी अपनी पुश्तैनी ज़मीन वापस ले ली है। और उसकी मां अब गाँव में जूठे बर्तन मांजने भी नहीं जाती। उसकी बहनें अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रही है ।
‘बहुत मेहनती लड़का है जग्गी करतारेयां और तूने उसे अच्छा ड्राइवर बनाकर बड़ा नेक काम किया।’ करतार यह सुनकर बहुत खुश हुआ मानो कोई उसके बेटे की प्रशंसा कर रहा हो।
जग्गी का साथ पाकर उसने भी बहुत कुछ पाया था । अब वह बीड़ी ,सिगरेट से कोसों दूर था। उसे शराब से घृणा हो गई थी।
नशे में जाने वाला पैसा अब आमदनी में जुड़ने लगा था। उसके स्वास्थ्य में भी काफी सुधार हुआ था। वह एक नेक आदमी बन चुका था। यह सब जग्गी की संगत के बदौलत ही था।
मुंह में निवाला डालते -डालते करतार जग्गी के साथ बताएं वक्त की यादों में खो सा गया।उसे जग्गी को अपना चेला बनाने पर अनमोल गुरुदक्षिणा मिल चुकी थी ।
— मनोज कुमार ‘शिव’