” सूरज जैसे हुआ सवाली ” !!
खगों का कलरव ,
भोर की लाली !
सूरज जैसे ,
हुआ सवाली !!
रातें रातें ,
कहाँ रही हैं !
दिन जगता है ,
रात जगी है !
दौड़ खत्म ना ,
जेबें खाली !!
मानव मनवा ,
हुआ मशीनी !
दिन की सत्ता ,
रात ने छीनी !
जगमग जगमग ,
शहर दे ताली !!
महिला पुरुष ,
सभी के सपने !
रात नहीं अब ,
दिन में टिकने !
साँझ , भोर नित ,
बदले पाली !!
सोना , जगना ,
नहीं पाबंदी !
वसन हुए कम ,
छाई मंदी !
बड़े , बुजुर्ग ,
देते गाली !!
जिम है योगा ,
समय , असमय !
मौसम रूठे ,
होकर निर्भय !
दिनचर्या ही ,
ऐसी ढाली !!
रिश्ते ढीले ,
गठबंधन भी !
छूट रहे हैं ,
अवलम्बन भी !
आज चाँद ना ,
उतरे थाली !!