हमारा चरित्र अच्छा तब बनता है जब हम अपने जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य रखते हैं: आशीष दर्शनाचार्य
ओ३म्
–वैदिक साधन आश्रम तपोवन में विद्यार्थी और चारित्र निर्माण विषय पर युवा सम्मेलन-
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के ग्रीष्मोत्सव में युवाओं को वेदों एवं वैदिक संस्कृति से परिचित कराने के लिए ‘‘विद्यार्थी और चरित्र निर्माण” कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें तपोवन विद्या निकेतन, साहिल स्मारक दयानंद वैदिक स्कूल लक्ष्मणचौंक, राजकीय इण्टर कालेज नालापानी एवं वाराणसी के पाणिनी कन्या गुरूकुल के लगभग 200 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। भाग लेने वाले कुछ बच्चों ने ही बोलने की तैयारी की थी। अनेक बच्चे अवसर दिये जाने पर बिना तैयारी के ही इस विषय पर बोलने के लिए आये और यथाशक्ति बोले। आश्रम के ग्रीष्मोत्सव में देश भर से पधारे ऋषि भक्त भी इस आयोजन में श्रोता रूप में सम्मिलित हुए। ऋषि भक्त वैदिक विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य द्वारा संचालित इस आयोजन में भजन एवं आर्य विद्वानों प्रो. नवदीप कुमार तथा आचार्य डा. धनंजय जी के सम्बोधन भी हुए। कार्यक्रम का आरम्भ आर्य भजनोपदेशक श्री दधीचि जी के एक गीत से हुआ जिसके बोल थे ‘आन बसो भगवान मेरे मन मन्दिर में, टूटा फूटा मेरा मन्दिर मेरा, चारों तरफ है घोर अन्धेरा। तुम आओ तो उजियारा तुम बिन है सब सुनसान मेरे मन मन्दिर में।।’ इसके बाद आर्य जगत के विश्व विख्यात गीतकार और गायक पं. सत्यपाल पथिक जी ने अपनी एक स्वरचित रचना प्रस्तुत की। उनके गीत के बोल थे ‘सुनते जाना सुनते जाना देश प्रेम का गाना सुनते जाना।’ युवा सम्मेलन में तपोवन विद्या निकेतन जूनियर हाई स्कूल के कक्षा 8 के बालक वैभव की पहली प्रस्तुति हुई। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जीवन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा ग्रहण करने के साथ चरित्र निर्माण करना ही है। देश के बालक व बालिकायें यदि सुशिक्षित व सुसंस्कारित होंगे तभी देश उन्नति कर सकता है। हमारे देश की स्कूली शिक्षा भारतीयों को सदा सदा के लिए गुलाम बनाये रखने की भावना रखने वाले अंग्रेज मैंकाले के विचारों का प्रतिरूप हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों के चरित्र निर्माण में माता-पिता तथा गुरुजनों का योगदान होता है। चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी मुख्यतः गुरुजनों की होती है। उन्होंने अंग्रेजी की एक लोकप्रिय कविता का उच्चारण कर कहा कि यदि धन चला जाये तो समझिये कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो समझिये कुछ चला गया और यदि चरित्र ही चला गया तो मनुष्य का सब कुछ चला जाता है। फिर कुछ बचता नहीं है। बालक वैभव ने कहा जीवन में सत्य व यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना ही विद्या प्राप्ति का उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि एक पढ़ा लिखा व्यक्ति यदि चरित्रवान नहीं है तो मैं उसे विद्वान नहीं कह सकता। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को कर्तव्यपारायण बनाना है। बालक वैभव ने कहा बच्चों व युवाओं के लिए वेदों की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिये। उन्होने कहा कि मनुष्य का चरित्र वृक्ष की छाया के समान होता है। कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्य विद्वान आशीष दर्शनाचार्य जी ने बच्चों से प्रश्न किया कि गुरुकुल किसे कहते हैं? बालिका प्रियांशी ने कहा कि गुरुकुल का अर्थ है गुरु का घर। इस उत्तर को स्वीकार किया गया। आचार्य आशीष जी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जीवन में अच्छी बातों को प्रस्तुत करने में डरना नहीं चाहिये।
आर्ष गुरुकुल पौंधा, देहरादून के ब्रह्मचारी भानुप्रताप आर्य ने सम्मेलन में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि मनुष्य के जो गुण दूसरों को प्रभावित करते हैं वह व्यक्तित्व कहलाता है। दूसरे मनुष्य किसी मनुष्य के व्यक्तित्व से जितने अधिक प्रभावित होते हैं वह मनुष्य उतना ही अधिक प्रभावशाली मनुष्य माना जाता है। आपातकाल में धैर्य को धारण करना, क्षमाशील स्वभाव वाला होना, वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करना, ऐसे गुण महापुरुषों में सामान्यतः होते हैं। ब्र0 भानु प्रताप ने कहा कि जिन के चित्त विपरीत परिस्थितियों में विचलित नहीं होते वह धीर पुरुष कहलाते हैं। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य प्रलोभन के सम्मुख नत-मस्तक नहीं होता, उसी मनुष्य का संसार में नाम व सम्मान होता है। ब्रह्मचारी जी ने वक्तृत्व कला की चर्चा की। उन्होंने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के शब्द ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का उल्लेख कर कहा की नेताजी की कथनी व करनी एक थी। सभी मनुष्यों की ऐसी ही कथनी व करनी होनी चाहिये। उन्होंने कहा कि सच्चे हृदय से निकले शब्द जनता को प्रभावित करते हैं। ब्रह्मचारी भानुप्रतान ने कहा कि महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी का नाम सुनकर आर्य जाति का सीना तन जाता है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों में जन्मजात महत्वपूर्ण गुण होते हैं, अनुमान होता है कि उन्होंने अपने पूर्वजन्म में पुरुषार्थ किया था। ब्रह्मचारी ने बताया कि मनुष्य व पशु में मुख्य भेद यह है कि मनुष्य का बौद्धिक विकास होता है परन्तु पशुओं का नहीं होता। उन्होंने कहा कि अनपढ़ मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहीं पाता। स्वदेश में राजा की पूजा होती है तथा विद्वान की पूजा सर्वत्र होती है।
ब्रह्मचारी भानुप्रताप ने कहा कि वेदों के विद्वान गुरु से प्राप्त विद्या सर्वश्रेष्ठ होती है। विद्यार्थियों को गुरुमुख से निकले वचनों को ग्रहण करने की चेष्टा करनी चाहिये। विद्यार्थियों की नींद समय पर खुल जानी चाहिये। विद्यार्थियों को आलस्य नहीं करना चाहिये। विद्यार्थियों को सन्तुलित व नियमित भोजन करना चाहिये। उन्होंने कहा कि सन्तुलित भोजन से स्फूर्ति आती है। ब्रह्मचारी ने परमात्मा को स्मरण मनुष्यों को अभिव्यक्ति के लिए वाणी देने के लिए उसका धन्यवाद किया और कहा कि पशु व पक्षियों के पास वाणी न होने से उन्हें अत्यन्त कठिनाई होती है। उन्होंने कहा कि परमात्मा यदि हमें वाणी न देता तो हमारी दशा भी पशु व पक्षियों जैसी होती। आचार्य आशीष जी ने सभी बच्चों से प्रश्न किया कि क्षमा किसका भूषण है? एक बच्चे ने उत्तर दिया कि क्षमा वीर पुरुषों का भूषण है। आचार्य जी ने बच्चों को धीर पुरुष की परिभाषा बताई और कहा कि सभी मनुष्यों को विपत्ति आने पर धैर्य को धारण करना चाहिये। आचार्य जी ने बच्चों से विद्यार्थी के पांच लक्षण पूछें? एक बालक ने इस प्रश्न सही उत्तर दिया। एक बालिका अंजलि पाठक ने भी इस प्रश्न का सही उत्तर दिया। इसके बाद साहिल स्मारक दयानन्द वैदिक जूनियर हाईस्कूल लक्ष्मण चौक की कन्या सोनम ने सम्मेलन के विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
छात्रा सोनम ने कहा कि शिक्षा ग्रहण कर और अच्छा साहित्य पढ़कर विद्यार्थी में चरित्र निर्माण होता है। विद्यालय व घर के परिवेश का चरित्र निर्माण पर प्रभाव पड़ता है। छात्रा ने कहा कि बच्चों का चरित्र निर्माण होगा तो वह विद्यार्थी समाज के लिए उपयोगी व हितकारी सिद्ध होगें। सोनम ने कहा कि ऐसे विद्यार्थी एक खिले पुष्प के समान उन्नति करके देश व समाज को आगे बढ़ायेंगे। चरित्र निर्माण के कारण ही विद्यार्थी सबके साथ उचित व्यवहार कर पाता है। राजकीय इण्टर कालेज, नालापानी के एक विद्यार्थी राकेश एक श्रोता के रूप में आये थे। उन्होंने विषय पर बोलने की तैयारी नहीं की थी। आशीष जी द्वारा बच्चों को बोलने की प्रेरणा करने से वह प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि मनुष्य का चरित्र निर्माण होने पर ही उसकी समाज में एक पहचान बनती है। इसमें समय लगता है। उन्होंने कहा कि एक गलती से चरित्र नष्ट भी हो जाता है। चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये। चरित्र चला गया तो वापिस नहीं आ सकता। उन्होंने कहा कि हमारे देश के जो आदर्श लोग हैं उनके जीवन चरित्रों को पढ़कर उनके गुणों को जानना चाहिये। विद्यार्थी राकेश ने कहा कि सभी बच्चों कोव बड़ों को पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का जीवन चरित्र पढ़ना चाहिये। सभी को सफलता प्राप्त करने के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिये। समय बीत जाने पर वह वापिस नहीं आता। समय का सदुपयोग करना चाहिये। जीवन को उन्नतिशील बनाना चाहिये। आदर्श व्यक्तियों के जीवन से सीख लेनी चाहिये। राकेश जी ने कहा कि जिस मनुष्य के पास विद्या नहीं है वह पशु के समान है।
तपोवन विद्या निकेतन के कक्षा 3 के बालक गगन ने कहा कि हम बहुत सारी चीजे सीखते हैं। हम समय नष्ट न करें। हमें ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। गगन ने कहा कि एक बच्चा खाली रहता था। खाली रहने से समय नष्ट होता है। हमें अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिये। यह बालक भी आचार्य आशीष जी की प्रेरणा से स्वयं सामने आया और कहा कि मुझे भी सम्मेलन के विषय में अपने विचार कहने हैं। कक्षा 4 के बालक आयुष्य रावत ने एक कविता सुनाई जिसके बोल थे ‘तुम भारत की मर्यादा हो, जन्म भूमि को स्वर्ग बनाओं।’ इससे अधिक यह बालक बोल नहीं सका। कक्षा 5 का बालक आरुल सिंह माइक पर बोलने आया परन्तु वह कुछ भी बोल नहीं सका। उसके माइक तक आने के प्रयत्न को ही लोगों ने सराहा। कक्षा 5 का बालक कृष्ण भी जो कहना चाहिता था, वह भूल गया और माइक के सामने कुछ देर खड़ा रहकर अपने स्थान पर लौट गया। कक्षा 5 के गौरव व शुभम् ने अलग अलग गायत्री मंत्र सुनाया। बालक वंश रावत ने कहा कि हमें पढ़ाई और खेल-कूद में ध्यान देना चाहिये। हमें किसी के साथ लड़ाई नहीं करनी चाहिये। सबसे अच्छा व्यवहार करना चाहिये। इस बालक ने भी बिना तैयारी के यह बातें कहीं। बालक प्रयांश ने कहा कि हमें अच्छा मनुष्य बनना चाहिये। मेहनत करनी चाहिये। हमें आगे बढ़ना चाहिये। कक्षा 3 की बालिका अनिष्का ने कहा कि हमें गुरुजनों का आदर करना चाहिये। बालक निखिल ने कहा कि हमें आपस में लड़ना नहीं चाहिये। दोस्ती करनी चाहिये। इस बालक ने गायत्री मन्त्र सुना कर अपनी बात पूरी की।
साहिल स्मारक वैदिक स्कूल की कक्षा 7 की बालिका पलक ने कहा कि विद्यार्थी वह होता है जो कुछ सीख रहा होता है। विद्यार्थी जीवन 5 वर्ष की आयु में आरम्भ होता है। व्यक्तित्व के विकास से चरित्र निर्माण होता है। हम सबको अनुशासन में रहना चाहिये। अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिये। हमें परिश्रमी होना चाहिये। हमें समय का पालन करना भी आना चाहिये। धैर्य से ही सब काम करने चाहिये। हमें सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श का पालन करना चाहिये।
तपोवन आश्रम के उत्सव में वाराणसी से उनकी प्राचार्या डा. नन्दिता शास्त्री एवं उनके साथ 7 छात्रायें भी आईं थी। आचार्या जी और उनकी सभी छात्रायें आश्रम के सभी आयोजनों में उपस्थित रहीं। इसी गुरुकुल की छात्रा मुदिता आर्या ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हममें विद्या ग्रहण करने की सामर्थ्य होनी चाहिये। यदि हमारा स्वभाव विद्या ग्रहण करने का है तो यह उत्तम है। मनुष्य के जीवन में चरित्र का महत्वपूर्ण स्थान है। हमें चरित्र की जरुरत होती है। देश में चरित्रवान युवक व युवतियों की कमी है। उन्होंने कहा कि पत्र-पत्रिकाओं में ऐसे चित्र छपते हैं जिससे चरित्र में गिरावट आती है। जिनका विद्या में विलास है, जो विनम्र हैं, जिनमें धीर मनुष्य के लक्षण हैं तथा जो शुद्ध व पवित्र आत्मा वाले हैं, वही मनुष्य चरित्रवान कहा जा सकता है। इस सम्बोघन के बाद तपोवन विद्या निकेतन की छात्रा चांदी, प्रियंका आदि ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘वेदों की झंकार लिए जब आया योगी वो प्यारा, झूम उठा आलम सारा।’
गुरुकुल पौंधा, देहरादून के आचार्य डा. धनंजय जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि विद्यार्थियों को ब्रह्मचर्य व्रत का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिये। ब्रह्मचारी मनुष्य चरित्रवान व यशस्वी होता है। आचार्य जी ने कहा कि ब्रह्मचारी ईश्वर का उपासक, स्वाध्यायशील, वेद मंत्रों के यथार्थ अर्थों को जानने वाला, वेदों का अध्ययन करने वाला तथा अपने शरीर के अंग प्रत्यंग को स्वस्थ व बलवान रखने वाले को कहते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हम ईश्वर की उपासना क्यों करें? उन्होंने कहा कि ईश्वर ने ही इस ब्रह्माण्ड व इसके सूर्य, चन्द्र, पृथिवी एवं पृथिवी के सभी पदार्थों को बनाया है। ईश्वर सर्वव्यापक सत्ता है। आचार्य जी ने पूछा कि ईश्वर सब जगत में उपस्थित है और सबके सब कर्मों को देखता है, तो क्या हम चोरी व गलत काम कर सकते हैं? हमें चोरी नहीं करनी चाहिये क्योंकि ईश्वर ने चोरी करने की शिक्षा व प्रेरणा नहीं की है। आचार्य जी ने कहा कि जो विद्यार्थी अपना चरित्र निर्माण करना चाहता है उसे ईश्वर की उपासना करनी चाहिये। विद्वान आचार्य ने कहा कि ब्रह्म का अर्थ वेदों का ज्ञान होता है। वेदों के ज्ञान को अपने जीवन में धारण करने से ही हम मनुष्य बनते हैं। डा. धनंजय जी ने गायत्री मन्त्र के महत्व को भी बताया। उन्होंने गायत्री मन्त्र के जप व उसके अर्थ सहित पाठ करने की प्रेरणा की।
आचार्य जी ने शरीर को स्वस्थ व बलवान बनाने की प्रेरणा की। हमारा शरीर ब्रह्मचर्य के पालन करने से ही बलवान बन सकता है। आचार्य जी ने क्रान्तिकारी शहीद पं. रामप्रसाद देहलवी जी के ब्रह्मचर्य पालन से स्वास्थ्य सुधार एवं शरीर को सुन्दर व आकर्षक बनाने का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बिस्मिल जी ने ब्रह्मचर्य पालन से अपने शरीर को पुष्ट, बलवान, आकर्षक व प्रभावशाली बनाया था। इतिहास में बिस्मिल जी ऐसे अकेले महापुरुष हैं जिन्होंने अपनी फांसी के दिन भी प्रातः उठकर ईश्वरोपासना सहित व्यायाम भी किया था। आचार्य जी ने ब्रह्मचर्य के पालन से प्राप्त होने वाली अनेक सिद्धियों वा शक्तियों के उदाहरण भी दिए। ऋषि दयानन्द के ब्रह्मचर्य पालन और उससे प्राप्त उनके शारीरिक बल और आत्मिक ज्ञान का भी उन्होंने उल्लेख किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे आचार्य आशीष जी ने कहा कि आप जानबूझकर झूठ न बोलें। उन्होंने कहा कि जिसने झूठ छोड़ दिया उसका चरित्र अच्छा बन जायेगा। आचार्य जी ने बच्चो से पूछा कौन बच्चा जीवन में झूठ नहीं बोलेगा। सभी बच्चों ने सत्य बोलने और झूठ न बोलने के समर्थन में अपने हाथ उठाकर आचार्य जी का समर्थन किया।
युवा सम्मेलन के मुख्य अतिथि प्रो. नवदीप कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि आचार्य उसे कहते हैं कि जो अपने आचरण से प्रातः ब्राह्ममुहुर्त में जागरण से लेकर रात्रि में शयन करने तक विद्यार्थियों को सदाचरण व कर्तव्यपरायणता का उपदेश देता है। मनुष्य अपने से बड़ों के आचरण को देखकर व उनका अनुकरण कर सीखता है। यदि पिता वेद मन्त्र पढ़ता है तो पुत्र पिता को देख व उनके वेदमंत्र पाठ को सुनकर उसे सीख जाता है। यदि किसी का पिता अपशब्द बोलता है तो उसका पुत्र भी वैसा ही व्यवहार करेगा। वैदिक धर्म में वेदों ने मनुष्यों को शिक्षा दी है कि तुम मनुष्य बनों। डा. नवदीप कुमार जी ने कहा कि मनुष्य वैदिक शिक्षाओं को धारण कर उसके आचरण व व्यवहार से ही सच्चा मानव बनता है। मनुष्य मनुष्य तब बनता है जब वह अपने कर्तव्यों व आचरण का ज्ञान प्राप्त कर उसके पूर्णतया अनुकूल आचरण करता है। उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्य तब बनता है जब वह यह संकल्प करता है कि वह बुराईयों का सर्वथा परित्याग कर देगा और अच्छाईयों को धारण करेगा।
प्रो. नवदीप कुमार जी ने कहा कि जो अच्छा है वह मेरे जीवन में सदैव रहे और जो बुरा है वह मुझसे दूर चला जाये। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सन्ध्या व यज्ञ करने का विधान बनाया है। सन्ध्या को उन्होंने जीवन निर्माण करने की तैयारी बताया। सन्ध्या में उपासक ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मेरे शिर जहां विचार पैदा होते हैं, परमात्मा उसे पवित्र करे। ईश्वर सर्वव्यापक है। सर्वव्यापक होने से वह मेरे निकटतम है अर्थात् मेरे बाहर व भीतर सर्वत्र है। वह मेरे विचारों को जानता है और हम जो बोलते हैं उसे सुनता भी है। सन्ध्या करते हुए हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हमारे विचारों को पवित्र करे। ईश्वर हमारी दृष्टि को भी पवित्र करने में हमें शक्ति प्रदान करे। हम जानबूझकर बुरा न देखे। हम अपने कानों से कल्याण करने वाले शब्दों वा वचनों को ही सुने। हम जो बोलें वह पवित्र होना चाहिये। हम संयमी हों। हम सेवाभावी बनें। सन्ध्या ईश्वर भक्ति तो है ही इसके साथ यह जीवन बनाने और चरित्र निर्माण की योजना है। परिवार में हमें सुख मिलता है। इस सुख के कारण हम अपने माता-पिता और परिवार के ऋणी हो जाते हैं। हम कितना भी कर लें, अपने माता-पिता का ऋण नहीं उतार सकते। हमें माता पिता का ऋण उतारने की कोशिश अवश्य करनी चाहिये। आचार्य हमारी आंखे खोलता है। वह हमें जीवन जीना सिखाता है। हमें ज्ञान देकर हमारा सर्वविध कल्याण करता है। हम माता, पिता, आचार्य सहित समाज के भी ऋणी होते हैं।
प्रो. नवदीप कुमार जी ने कहा कि समाज का सुधार करने का दायित्व भी हमारा है। उन्होंने याद दिलाया कि आज 10 मई का दिवस है। इस दिन का ऐतिहासिक महत्व है। सन् 1857 के दिन आज ही स्वतन्त्रता संग्राम व क्रान्ति आरम्भ हुई थी। सन् 1857 के प्रथम क्रान्तिकारी मंगल पांडे को फांसी भी दी गई थी। भारत के सैनिक देश को आजादी दिलाने के लिए मेरठ से दिल्ली के लिए कूच कर गये थे। प्रो. नवदीप जी ने बताया कि लाला लाजपतराय लाहौर के किले में आजादी की स्वर्ण जयन्ती मनाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि 10 मई का दिन बदलाव का दिन है। हमें ज्ञान प्राप्त करना है और उस ज्ञान से अपनी दिशा को तय करना है। हमें ज्ञान से प्रकाशित सुविचारित मार्ग पर ही चलना है। इसी के साथ प्रो. नवदीप कुमार जी का सम्बोघन समाप्त हुआ। आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने उनके सम्बोधन की प्रशंसा की।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि हम पूरे जीवन भर सीखते हैं। हम जीवन भर विद्यार्थी रहते हैं। हमें अपने व दूसरों के चरित्र को बनाना है। हमें परमात्मा का ध्यान करना है। कोई भी गलत काम नहीं करने हैं। हम चोरी नहीं करेंगे। मधुर भाषा बोलेंगे। हम सब विद्यार्थी हैं। सारा जीवन हम सीखते रहते हैं। भगवान सबको शक्ति दें। हम सबको पुरुषार्थ करना है। ओ३म् शान्ति।
कार्यक्रम के सूत्रधार व संचालक आचार्य आशीष दर्शनाचार्य ने कार्यक्रम को समाप्त करते हुए कुछ वचन कहे। उन्होंने कहा कि हमें साहस रखना है। मेहनत करनी है। जीवन में आगे बढ़ना है। आचार्य जी ने कहा कि हमारा चरित्र अच्छा तब बनता है जब हम अपने जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य रखते हैं। जब हम ईमानदारी से मेहनत करते हैं तब हमारा चरित्र बनता है। यदि हम लक्ष्य बनायेंगे तो हमारा जीवन ठीक से आगे की ओर चलता व बढ़ता जायेगा। हमारा चरित्र सुरक्षित रहेगा। इसी के साथ युवा सम्मेलन का सफलतापूर्वक समापन हुआ। शान्तिपाठ के साथ सभा विसृजित हो गई।
हम यह अनुभव करते हैं कि इस कार्यक्रम में विद्यालयों के जो लगभग 200 बच्चे सम्मिलित हुए हैं उन्हें इस कार्यक्रम से न केवल अपने चरित्र निर्माण की ही प्रेरणा प्राप्त हुई है अपितु उन्हें अपने शरीर, आत्मा सहित सामाजिक उन्नति करने की प्रेरणा व संस्कार भी मिले हैं। इसके प्रभाव से सभी बच्चे जीवन में आगे बढ़ेगे। ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से आर्यसवमाज निश्चय ही समाज की उन्नति में अग्रणीय सहयोग कर रहा है। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य