“कुंडलिया”
मौसम होता प्रौढ़ है, कर लेता पहचान
चलती पथ पर सायकल, डगर कहाँ अनजान
डगर कहां अनजान, बचपनी साथी राहें
संग मुलायम भाव, लौह से लड़ती चाहें
कह गौतम कविराय, प्यार तो जीवन सौ सम
चक्र चले दिन रात, धुरी पर चलता मौसम।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी