ग़ज़ल
किसी से कुछ भी अब छुपाने का नईं
जो कसम खाई हो तो बताने का नईं
बदल गया है दौर बदला है जमाना
भरोसा अब करना ज़माने का नईं
ग़म में डूबे हो फ़िर भी मुस्कुराते रहो
ग़म अपना किसी को दिखाने का नईं
प्यार में मिल जाए जो धोखा तुम्हे तो
फिर दिल ये किसी से लगाने का नईं
बदल लो अपनी आदत सुधर जाओ
खरी खोटी किसी को सुनाने का नईं
कठिन दौर में जो तेरे साथ खड़े थे
उन लोगो को कभी भुलाने का नईं
अपने ही अपने न हो सके ग़र नन्हा
फिर ग़ैरों को अपना बनाने का नईं
-शिवेश अग्रवाल ”नन्हाकवि”