ग़ज़ल
आँखों को भी मल मल देखा।
तुमको खुद में हर पल देखा।।
बारिश के मौसम में आकर।
बादल सा मन पागल देखा।।
जब – जब आयी तेरी बातें।
रीता तन- मन घायल देखा।।
वापस आओ रूठो मत यूँ।
बहता कहता काजल देखा।।
जंजीरों में जकड़ी रस्में।
ढोता मानव हर पल देखा।।
तन्हा तन्हा सब दुख भोगा।
प्रश्नों का ना कुछ हल देखा।।
ख़्वाबों की आभा से झिलमिल।
आँखों में केवल जल देखा।।
आशीषों की छाया वाला।
प्यारा माँ का आँचल देखा।।
प्रियवर मेरे तुमको मैने।
निर्मल निश्छल कोमल देखा।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’