उम्मीदें
2212 2212 2212
बैसाखियों पर चलती उम्मीदें मेरी
अब नफरतों पर पलती उम्मीदें मेरी
न मिला शजर, न मिली कली कोई कभी
बनकर परिंदा उड़ती उम्मीदें मेरी
शब रो रही महताब के आगोश में
तारों के साथ ये रोती उम्मीदें मेरी
पाया न जब सपनो का इसने आसमा
तब पत्थरों सी चुभती उम्मीदें मेरी
न बना सकी उल्फत का ताजमहल ये जब
वीरानों में तब रहती उम्मीदें मेरी
जब इश्क़ का न कलाम पढ़ पायी कोई
अफसाना बन तब उड़ती उम्मीदें मेरी।