ग़ज़ल
सदियों के अरमान छुपाये बैठे हैं
दिल में इक तूफान छुपाये बैठे हैं
बाँट रहे हैं मिलजुलकर सब अपना ग़म
इक हम हैं नादान, छुपाये बैठे हैं
छीन न ले जाये दुनिया यह भी हम से
सो अपनी पहचान छुपाये बैठे हैं
हम अपनी बंज़र-पथरीली आंखों में
बारिश के इम्कान छुपाये बैठे हैं
यादें उसकी दिल में हमारे, यूँ समझो
दिल के भीतर जान छुपाये बैठे हैं
बच के रहो उनसे जो चेहरे के पीछे
चेहरों की दूकान छुपाये बैठे है
— जयनित कुमार मेहता