दूसरी औरत
अजीब नशा था छोटे कुंवर को दूसरी औरत का, आय का एक बहुत बडा हिस्सा उसके एक इशारों पर लुटाया जा रहा था उसके ऊपर, सभी समझा समझा कर हार चुके थे ।
मायके बालों ने भी ये कहकर समझा दिया कि आज नही तो कल लौटकर तेरे पास ही आयेगा, ससुराल बालों ने भी ये कहकर समझा दिया कि उसके नाम के आगे तो तेरा ही नाम आयेगा ये हक कोई नही नही छीन सकता तुमसे ।
छोटे कुंवर को न बच्चों की मासूमियत दिखती न पत्नी के आंसुओ का दर्द।
एक दिन पत्नी ने भी रोज रोज की कलह से बचने के लिये हमेशा के लिये दूसरी औरत के पास रहने को बोल दिया ।
अन्धा क्या चाहे दो आंखे, मृगतृष्णा में बंधा था, दूसरी औरत की खूबसूरती और वासना के आगे कुछ नही दिखाई दे रहा था ।
सारी आय उस पर लुटाता, तो पिता ने भी जायदाद से बेदखल कर दिया कि कहीं सब उसके ही नाम न कर दे।
अब उसके पास लुटाने को सिवा आय के कुछ न था…एक दिन उस दूसरी औरत दूसरा आसामी ढूंढ लिया और उस अमीर का हाथ पकड कर कुंवर का हाथ छिडक कर चली गयी ।
सुबह का भूला शाम को घर आ गया । पर पत्नी ने स्वीकार करने से मना कर दिया।
“बहू जो तूफान आना था आकर चला गया अब क्यों तुम उसको फिर से हवा दे रही ” सास ने बहू को समझाने की कोशिश की ।
“ये तूफान तो शान्त हो गया और जाते जाते सपने, खुशियां विश्वास सब साथ ले गया, पर इस दिल में जो तूफान अभी भी चल रहा है कि आखिर क्यों, ये मेरी सांसों के साथ ही जायेगा।” चेहरे पर दृढता के भाव के साथ अपना फैसला सुना दिया कि “आपका बेटा बनकर आ सकते है लेकिन मेरे पति बनकर नही ” बच्चों ने भी मूक सहमति देकर माँ के साथ अन्दर चले गये।
— रजनी चतुर्वेदी