गीत/नवगीत

विरह वेदना

विरह वेदना के आँचल में ,कैसे तुझे छुपाऊँ मै
कहने को तो मै माँ हूँ पर, तुझे बचा न पाऊँ मै–!

लोग कहें परछाई मेरी,मन ही मन मुस्काती हूँ
देख के तुझमें बचपन अपना,फूलों सी खिल जाती हूँ
टुकड़े होती परछाँई को,किस आँचल में छुपाऊँ मै-
कहने को तो मै माँ हूँ–!!

जब भी अस्मित को झुलसाया,जग के ठेकेदारों ने
सिसक-सिसक तू ममता रोई, शोर नहीं चित्कारों में
तन-मन पर जो लगी है चोटें, कौन सा लेप लगाऊँ मै-
कहने को तो मै माँ हूँ–!

न कोई बनता भगत सिंह अब, न कोई विदुषी वाला है
लाज शरम सब बेच के फिरता, हर कोई मतवाला है
रहे सभ्यता यहाँ यशस्वी कौन सा पाठ पढा़ऊँ मै-
कहने को तो मै माँ हूँ–!!

नीरू “निराली”

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005