कविता

“कुंडलिया”

पाती प्रेम की लिख रहे, चित्र शब्द ले हाथ।

अति सुंदरता भर दिये, हरि अनाथ के नाथ।।

हरि अनाथ के नाथ, साथ तरु विचरत प्राणी।

सकल जगत परिवार, मानते पशु बिनु वाणी।।

कह गौतम कविराय, सुनो जब कोयल गाती।

मैना करे दुलार, पपीहा लिखता पाती॥-1

लचकें कोमल डालियाँ, अपने अपने साख।

उड़ती नभ तक पक्षियाँ, लहरा करके पांख।।

लहरा करके पांख, आँख से आँख लड़ाते।

खग मृग रहते साथ, हाथ नहिं जिया मिलाते।।

कह गौतम कविराय, कभी क्या चलते बचके।

कहो कहाँ वह बाग, जहाँ खग झूला लचके॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ