छन्द- वाचिक गंगोदक
(40 मात्रा, क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त, मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी – 212 212 212 212, 212 212 212 212, अथवा – गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा,
चीन का दाँव ही पाक की ढाल है, देख पाया कभी क्या उड़ा की गिरा।
मुफ्त का माल है खा रहा पाल है, छद्म साया सभी क्या खड़ा की गिरा॥
पाप पापी करे मौन बाबा भले, क्या गुनाहों गिला का तमाशा हुआ।
हाथ जो आ गया वो चुराता गया, भान आया अभी क्या अड़ा की गिरा॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी