गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 2

कश्ती   तूफान   में   उतारो  तो ।
आएगा   वो  भी तुम पुकारो तो ।
चार  सू   बदलियाँ  उमड़  आईं ,
जुल्फ़ें   ऐसे  न अब  सँवारो तो ।
आईना   हो न जाए  ख़ुद घायल ,
उसको  इतना भी मत निहारो तो ।
गर्मियाँ  हैं   शबाब   पर  अपने ,
शम्स  की  भी नज़र  उतारो तो ।
खेल का लुत्फ़ भी ग़जब होगा,
बाज़ी  जीती  हुई  भी  हारो तो ।
पार हो  जाएगा  ‘प्रखर’  दरिया,
थोड़ा  सा   हाथ  पैर  मारो तो ।
राजेश प्रखर

राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर'

राजेश श्रीवास्तव प्रखर कटनी (म.प्र.)