ग़ज़ल 2
कश्ती तूफान में उतारो तो ।
आएगा वो भी तुम पुकारो तो ।
चार सू बदलियाँ उमड़ आईं ,
जुल्फ़ें ऐसे न अब सँवारो तो ।
आईना हो न जाए ख़ुद घायल ,
उसको इतना भी मत निहारो तो ।
गर्मियाँ हैं शबाब पर अपने ,
शम्स की भी नज़र उतारो तो ।
खेल का लुत्फ़ भी ग़जब होगा,
बाज़ी जीती हुई भी हारो तो ।
पार हो जाएगा ‘प्रखर’ दरिया,
थोड़ा सा हाथ पैर मारो तो ।
— राजेश प्रखर