ग़ज़ल
वह हमें भी हिज़्र का इक सिलसिला दे जाएगा
आंसुओं के साथ थोड़ी सी जफ़ा दे जाएगा ।।
जिस शज़र को हमने सींचा था लहू की बूँद से ।
क्या खबर थी वो हमें ही फ़ासला दे जाएगा ।।
बेवफाई ,तुहमतें , इल्जाम कुछ शिकवे गिले ।
और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा ।।
क्या सितम वो कर गया मत बेवफा से पूछिए ।
वो बड़ी ही शान से मेरी ख़ता दे जाएगा ।।
फुरसतों में जी रहा है आजकल आलिम यहाँ ।
माँगने से पहले ही वह मशबरा दे जाएगा ।।
चोट खा के फिर सँभलना और ये जख़्मी जिग़र ।
कौन जाने इश्क़ कोई फ़लसफ़ा दे जाएगा ।।
मुन्तज़िर है ये जमाना अब अदालत पर निगाह।
बे गुनाहों पर खुदा क्या फ़ैसला दे जाएगा ।।
आज़माना छोड़िये कुछ तो भरोसा कीजिये ।
आदमी वो जिंदगी का वास्ता दे जाएगा ।।
ये हवाएं आ रहीं हैं बारहा खुशबू के साथ ।
अब कोई झोंका मुझे उसका पता दे जाएगा।।
यूँ ही ठहरी हैं बहुत मायूसियां इस दौर में ।
आपका तो मुस्कुराना हौसला दे जाएगा ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
वाह