” आश्रय दें घर तेरे मेरे ” !!
छाया , कृपा , निवास , निकेतन –
हैं कुटीर , आवास घनेरे !
सबके मन में चाहत पलती ,
छत भी हो अब सिर पर मेरे !
नील गगन तो सबका अपना ,
घर पाने की ललक है टेरे !!
जीवन भर एक भाग दौड़ है ,
जीवन भर है आपा धापी !
सपने तो सपने होते हैं ,
घर के सपने पूरनमासी !
सारी किल्लत झेल ही लेगें ,
गर घर हों , खुशियों के डेरे !!
जलचर , नभचर ,थलचर सारे ,
नीड़ बनाते , खोह बनाते !
वही प्रेरणा देते हमको ,
जीवन सारा यहीं खपाते !
जहाँ मिले प्राणों को स्पंदन ,
दस्तक देते वहीं सबेरे !!
सुबह शाम है यहाँ जागरण ,
ऊर्जा से अर्जन करना है !
और रात के फेरों में ही ,
अपनों से मंथन करना है !
परिजन हों , विश्राम भी संग में ,
मन उपजे विचार बहुतेरे !!
आशीषों की छाया है तो ,
वहीं बसी है माया भी तो !
बच्चों की किलकारी गूंजे ,
मनभाता हमसाया भी तो !
रोज उड़ें हम पंख लगाकर ,
घर से घर तक नित के फेरे !!
घर बिन सबको चैन कहाँ है ,
घर है तो दिन रैन यहाँ है !
शरणार्थी से घर ना है तो ,
खोये खोये नैन यहाँ है !
महल , अटारी सब ना चाहें ,
आश्रय दें घर तेरे मेरे !!