छंद -“पद्धरि”
छंद -“पद्धरि”(पदपादाकुलक की उपजाति)*शिल्प विधान – मात्रा भार =16, आरम्भ में गुरु अनिवार्य *पदपादाकुलक चौपाई में चार चौकल बनते हैं तभी लय सटीक आती है । *अंत में 121 ( जगण)
हो पावन मनभावन उद्यान।
हरियाली सुहावन पहचान॥
झूमे पेड़ घर बाग महान।
डाल डाली पर फूल सुजान॥
गाए कोयली साँझ बिहान।
गुंजत भौंरा कलियन मुस्कान॥
माली रखता अपनी पहचान।
भाग्य धन्य हम हुये किसान॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी