गाँव
अगर जो गाँव को छोडूँ तो बस्ती रूठ जाती है
अगर मैं शहर ना जाऊँ तरक्की रूठ जाती है
मुहब्बत में शिकायत का अलग अपना मज़ा देखा
मुझे जब देर होती है तो खिड़की रूठ जाती है
कि बूढे बाप की मज़बूरियों से क्या उसे मतलब
ज़रा सा कम मिले सामान लड़की रूठ जाती है
नही आसान लोगो दुश्मनी ऐसे नही निभती
अगर खामोश बैठूगां तो बर्छी रूठ जाती है
किसे अच्छा लगेगा यूँ ग़मो में मुब्तिला होना
खुशी का क्या करू साहिब ये जल्दी रूठ जाती है
परेशां हूँ बहुत इस ज़िन्दगी से क्या करू लेकिन
लकी’ जो डूबना चाहूँ तो कश्ती रूठ जाती है