मिडिल क्लास का क्लासिक सुख
अपने घर के आंगन मे खड़े होकर हवाई जहाज को आसमान मे जब भी ऊँचा–बहुत ऊँचा उड़ता हुआ देखता हूँ तो उसके अंदर झांकने में नाकाम ही हो जाता कारण जो हवाई जहाज पैसे वालों के लिये मात्र आवागमन का साधन होता है वहीं हम जैस की मध्यमवर्गीय लोगों के लिये वो आज भी पहुँच से बाहर विस्मय की वस्तु है फ़िर भी आभाव युक्त हम मध्यमवर्गीय लोग अपनी खुशियों के लिये किसी फाइव स्टार के मोहताज नही होते हमे तो दो चार दोस्तो के संग चाट का कोई ठेला भी उतना ही आकर्षक लगता है जितना किसी रईस जादे को पंचसितारा होटल!
अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं की हर पल हत्या करती हमारी जीवन शैली पर भारी है वो खुशी जो हमे मिलती है किसी सब्जी वाले के मुफ्त धनिया और हरी मिर्च देंने से। हम खुश हो जाते हैं अकस्मात किसी पुराने बहुत पुराने मित्र के अचानक बाजार हाट मे सालो बाद मिल जाने से। हम इतराते है पापा के पुराने स्कूटर पर ममी के साथ मार्किट जाने पर।
हम मिडिल क्लास वाले त्रिशंकु की तरह पेड़ पर लटक कर झूलने मे अपार सुख का अनुभव करते हैं.. जो ना आसमान छू सकता है न ज़मीन पर सुकून से लेट सकता है. जहाँ एक गरीब आदमी मोटी रोटी खा कर अपने कच्चे घर की छत के नीचे बड़े आराम से गहरी नींद सोता है वहीं हम लोग पतले चावल और स्लीप वेल मैट्रेस की जद्दोजहद मे सदा उलझे रहते हैं और खुश हो जाते हैं अपने पुराने पंखे को हटा कर नये कूलर को लगवा लेने पर बिल्कुल किसी शहंशाह की तरह…….. महसूस होता है।
अपने घर की दीवारो पर एशियन पेंट लगवा कर निहारने का सुख इस मिडिल क्लास के आलावा किसी और वर्ग को क्या मालूम ! या फ़िर भाग्य से घर का कोई बच्चा फर्स्ट से दसवीं पास हो जाये तो उसी समय लगता है की पूरा परिवार साक्षर हो गया है। बच्चे का शहर के बड़े कॉलेज मे दाखिला हो जाना बड़ी लॉटरी खुल जाने से ज़रा भी कम हैं।
लेकिन पता होता की मेहनत ही परिश्रम की कुंजी है और वही कुंजी से अगर 15 -20 हजार की सरकारी नौकरी हांसिल कर ले तो ये क्या किसी राजसी सुख पाने से कुछ कम है.. अगर बिटिया का ब्याह अपने से ऊँचे घर मे होने पर मिली खुशी मानो लगता है जीवन सफल हो गया।परिवार की आपाधापी और उठापटक से छूटकारा मिल गया हो.
“बस थोड़ा सा, बस थोड़ा सा सफर और ऐ ज़िन्दगी…
तूने इसी आस पर बहुत थका दिया है मुझे।”
हम मिडल क्लास वाले भली भांति पता होता है की आज घर में दाल गलेगी या पनीर और रात का कम्बल तो पैरो से तान तान कर ही पूरा कर लेते है। आज भी गरमियों मे लाइट चले जाने पर छत के ऊपर फोल्डिंग डालकर चाँद मे चरखा घूमने का अहसास और सैकड़ो टिमटिमाते तारो को ऊँगली में काउंट करते करते सो जाना ये सुख सिर्फ हम मिडिल क्लास वालों को ही मिलता है !!
मध्यवर्ग के खाँचे
कसावट भरे होते हैं
शायद होती है
कुछ अधिक ज़िन्दगी भी
बचता है वो हमेशा
उछलकर खाँचो से
बाहर आने से
नैतिकता और उसूल
रखता है पकडकर
सपने देखता है
नीची उडानो का
साहित्य,सन्गीत और
विचारो की
निकलती है नदियाँ
यही से
सीना तान कर चलता है
क्रान्ति की ज़मीन पर
भरा होता है
सम्भावनाओं से हमेशा
ये मध्य वर्ग भी ना
अजीब होता है
है ना!!
मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन के सारे रंग मौजूद हैं।सपने हैं, उम्मीद है, योजनाएँ हैं और हादसों की वजह से सपनों का टूटना है, उम्मीदों का बिखरना है और योजनाओं का बिगड़ना है। छोटी-छोटी खुशियाँ हैं, बड़े-बड़े गम है। निराशा है, उदासी है और मायूसी भी लेकिन इस निराशा, उदासी और मायूसी को हमेशा के लिए दूर करने का जुनून भी है ..
भारत में मध्यमवर्गीय परिवारों की अपनी अलग ज़िंदगी है। इस ज़िंदगी में संघर्ष है। संघर्ष है गरीबी से जितना दूर हो सके उतना दूर भागने का, संघर्ष है अमीरी के जितना करीब आ सके उतना करीब आने का। संघर्ष है ये कोशिश करने का कि ज़िंदगी में दिक्कतें न हों,समस्याएँ न हों, ज़िंदगी में सुख-सुविधाओं का अभाव न हो। भारत में ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवारों के मुखिया या तो नौकरी करते हैं या फिर कोई छोटा-मोटा कारोबार। अक्सर देखने में आया है कि इन परिवारों के सपने और अरमान भी न ज्यादा बड़े होते हैं न ही बहुत छोटे। दिलचस्प बात ये भी है कि ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवारों में माता-पिता अपने बच्चो की आँखों से अपना सपना देखते है| माता-पिता को ये लगता है कि उनकी संतानें उन्हें आपाधापी और उठापटक वाली ज़िंदगी से मुक्ति दिलाकर सुख-शान्ति और तरक्की वाली ज़िंदगी की ओर ले जायेंगी। यही वजह भी है ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं।
— राहुल प्रसाद