मैनर
श्री अग्रवाल जी आज भी रोज की तरह स्कूल जाते वक्त़ मनु पान ठेले पर रूके। पान बनवाये। मीठीपत्ती वाले रसदार पान मुँह में रखा। थोड़ा सा चूना दबाया। वैसे भौतिकशास्त्र के व्याख्याता अग्रवाल जी उस अंचल में परिचय के मोहताज नहीं थे। विषयाध्यापन में उनकी अच्छी पकड़ थी। बच्चे उनकी अध्यापनशैली को खूब पसंद करते थे। वे कक्षाध्यापन अवधि को बच्चों के अनुकूल रुचिकर बनाये रखने में दक्ष थे। पान का आनंद लेते हुए अग्रवाल जी अखबार पढ़ने लगे। अचानक उनकी नजर सरकारी प्राथमिक शालाओं के शिक्षास्तर के मुद्दे पर पड़ी। मुस्कुराने लगे। मुसकान में तनिक कुटिलता थी। वे पानठेले से कुछ बतियाना शुरु किये ही थे कि पुलिस इंस्पेक्टर विनय कुजुर जी की बाइक आकर रूकी। फिर दोनों बातचीत में मशगूल हो गये।
अग्रवाल जी कह रहे थे कि गौरमेंट प्रायमरी स्कू्ल्स का लेवल आज बहुत ही खराब है। बच्चों कुछ आता ही नहीं। टीचर्स पता नहीं क्या करते हैं। स्कूलों में अयोग्य टीचर्स की बहुतायत है। लगता है , टीचर्स बच्चों कुछ मैनर्स बिल्कुल ही नहीं बताते । बच्चों में टीचर्स के अच्छे सलीके का कोई इम्प्रेशन ही नहीं दिखता। बच्चे हाई/हायर सेकंडरी स्कूल्स आ तो जाते हैं ; पर उन्हें हैंडल करने में हमें दिक्कतें होती है। बिल्कुल जीरो होते हैं बच्चे। इंस्पेक्टर कुजूर जी अन्य विभाग के होने के कारण वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। हाँ…हाँ… में हल्के-हल्के सिर हिला रहे थे।
इस तरह प्राथमिक स्कूल के प्रति अग्रवाल जी की भर्त्सनाभरी विचाराभियक्ति जारी ही थी, तभी ठेले के पास एक बालक आया। कक्षा चौथी का शिखर था वह। स्कूल जा रहा था। अग्रवाल जी को देख लिया। शिखर उन्हें अचछी तरह पहचानता था , क्योंकि वे रोज शिखर के स्कूल से होकर गुजरते थे। फिर शिखर सावधान के मुद्रा में खड़ा हुआ। दोनों हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक अग्रवाल जी से बोला – ” प्रणाम सर जी ! ” तभी उसे इंसपेक्टर कुजूर जी भी दिख गये। इस बार शिखर अपने मुट्ठी बंधे एक हाथ पेंट से चिपकाये दूसरे हाथ से सलामी देते हुए मुखरित हुआ- ” जयहिन्द ! “। अब वहाँ से शिखर चलने लगा। फिर हुआ यूँ कि भौतिकविद् अग्रवाल जी व इंस्पेक्टर कुजूर जी शिखर के छोटे-छोटे कदमों को देखते ही रहे ओझल होते तक और पानठेले वाले ने अपनी दृष्टि इन दोनों पर गड़ा दी।
— टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला ”