” —————————— उर में आग समाय ” !!
हरियाली उपवन बसे , कानन हैं अकुलाय !
सूनापन काटे यहाँ , उर में आग समाय !!
सन्नाटे को चीरती , पवन भेदती जाय !
शीतलता देती नहीं , दहकाती है जाय !!
आरी वन पर है चली , खूब रिसे हैं घाव !
संकट टारे ना टरे , रही न शीतल छाँव !!
मेघों की गर्जन कहाँ , थमी थमी बरसात !
धरा कभी है डोलती , उठते झंझावात !!
खेत हुए सूने सभी , नहीं मेढ़ ना छाँह !
जामुन , आम , नीम कहाँ , गौरी गहे न राह !!
हुई प्रदूषित है हवा , जीना हुआ मुहाल !
जिम्मेदारी ओढ़ लें , बदले सूरत हाल !!
नवल पौध रौंपें यहाँ , कोशिश हो पुरजोर !
हरियाली ओढ़े धरा , लहराये हर ओर !!