बहार बनकर आई हो
आग उगलती दुनिया में
जलधार लेकर आई हो।
नफरतों से भरी इस दुनिया में
तुम प्यार लेकर आई हो।
स्वार्थ की भागाभागी में
दुनिया मतलब की अनुरागी है।
ऐसी खुदगर्जी की दुनिया में
तुम बहार लेकर आई हो।
तुम आई जबसे बदला जीवन
बदले सारे नजारे हैं।
जीवन की आपाधापी में
अब सभी जन लगते प्यारे हैं।
दुख और भय की चादर ओढ़े
हर चेहरा मुर्झाया है।
ऐसी घबराती इस दुनिया में
तुम खुशियों की झंकार बनकर आई हो।
आई हो तुम उत्साह बनकर
तुम प्रेरणा बन चली आई हो।
आई हो जीवन महकाने
तुम प्रेम का गीत बनकर आई हो।
मुकेश सिंह