“गीतिका”
पर्दे में जा छुपे क्यों सुन चाँद कल थी पूनम।
कैसे तुझे निकालूँ चिलमन उठाओ पूनम।
इक बार तो दरश दो मिरे दूइज की चंदा-
जुल्फें हटाओ कर से फिर खिलाओ पूनम।।
हर रोज बढ़ते घटते फितरत तुम्हारी कैसी
जुगनू चमक रहें हैं बदरी हटाओ पूनम।।
फिर घिर घटा न आए निष्तेज हुआ सूरज
अब तो गगन खुला है रौशन लुटाओ पूनम।।
कहीं रात छुप न जाए जब भोर मुस्कुराए
झटपट पकड़ लूँ पल्लू घूँघट समाओ पूनम।।
मुखड़ा छूपाके कबतक आहें जिगर भरोगी
आकर गई अमावस चौदस छँहाहो पूनम।।
गौतम मेरे फलक पर एक बार घूम जाओ
बड़ी सर्द हैं हवाएँ मत दूर जाओ पूनम।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी