लघुकथा

फिजूलखर्ची

चिलचिलाती धूप में लोगों की बडी भीड़ अपने प्रिय नेता को सुन रही थी । रैली में उमड़ी भीड़ से गदगद नेताजी का उत्साह चरम पर था । उन्होंने मंच से दहाड़ना शुरू किया ,” भाइयों और बहनों ! आज हमारा देश गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है । सरकार सभी तरह की फिजुलखर्चियों पर रोक लगा रही है । देश हित में आप भी फिजूलखर्ची का त्याग करें । बचत करें और सरकार का हाथ मजबूत करें ! धन्यवाद ! ” दस मिनट बाद रामू गांववालों संग रैली से लौटते हुए अपनी टूटी चप्पल घसीटते हुए सड़क की तरफ बढ़ रहा था । सौ से अधिक चमचमाती वातानुकूलित कारों के काफिले में नेताजी दूसरी रैली को संबोधित करने जा रहे थे ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।