ग़ज़ल
वो कितना टूटा होगा ?
जो मेरा सपना होगा ।
जिसका दिल बेजार हुआ
सोचों वो कैसा होगा ?
अश्क छुपा कर लोगों से
वो तनहा रोया होगा ।
तुलसी तो तुलसी होगा
रतना! तेरा क्या होगा ?
“गंजरहा” हम रोये हाय
क्या वो भी रोता होगा ?
© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी “गंजरहा”