घुमक्कड़ पथिक
सच्चे रिश्तें को ढूंढने निकल एक घुमक्कड़ पथिक.
जब से रूप बदला है उसने .
उसकी काबिलियत पर उंगलियां उठानी शुरू कर दी,
जब अपनो पर पैसा लुटाता रहा तब वाहवाही मिलती.
तब एक आदर्श चाचा बन जाता.
आज वही शख्श सबको लापरवाह
और झूठा नज़र आता
जब अपने पैसे से अपने बड़े भाई के लिए कपड़े लाता
तब वो एक जिम्मेदार बेटा और भाई बन जाता.
जब से उसने खुद को बदल लिया.
उसके गैरजिम्मेदार भाई भी जिम्मेदार बन गए हैं.
वही भाई अपने हिस्से की कमाई से घर चलता था.
तब एक होनहार पुरुष सबको नज़र आता था.
जब से खुद के लिये जीना लगा है.
सब रिश्तेदारों को एक आवारा इंसान लगने लगा है.
जब से उसने गेरुआ कपड़े पहनने शुरू कर दिये
कमण्डल भी थाम लिया तब से हर इंसान को गैरजिम्मेदार और झूठी बातें करने वाला लगने लगा
जो अपने माँ बाप के लिये.
अपने हिस्से का त्याग करता रहा .
जबसे उसके बच्चे बड़े हो गये है.
लोगों की नज़रो में खटकने लगे हैं.
उसकी बेटियाँ लोगो को सयानी लगने लगी है.
लापरवाह पिता की वजह से उम्रदराज न हो जाये.
उस शख्स के बड़े भाई ने एक कहानी बनाई है.
लोगों की नज़रो में उस शख्श को गिराने की साजिश
अब मुझे समझ आने लगी है.
नई चाल चल रहा है अपनेपन की आड़ में.
उसकी बेटियां उसके भाई को खटकने लगी है.
रिश्ता कितना निभाते हैं लोग ये तो समझ आ गया.
मगर जब भी कर्त्तव्यों को निभाने की बारी आई.
उन चिंता करने वालो की भीड़ कही नज़र न आई.
सच्चा रिश्ता प्रेम और अपनेपन का होता है.
मगर सब इन सब बातों को स्वार्थी इंसान क्या समझे.
किस ने निभाया उसके साथ अपनेपन का रिश्ता
बस उसने अपना रूप बदला था
लोगो ने तो उससे रिश्ता ही बदल दिया.
क्या रिश्ते सुंदर व्यक्तित्व से और.
अच्छे पहनावे से बनाये जाते हैं.
जो खुद की मेहनत से सरकारी नौकरी करता है.
लोगो को लगता है कि फ्री की रोटी तोड़ता है.
आज न वो किसी का भाई है ना किसी का बेटा.
लोग उसे बस ‘ बाबा ‘ नाम से बुलाते हैं.
मगर एक इंसान हैं जो हमेशा उसके साथ है.
वो उसकी अर्धांगिनी है जीवनसंगिनी है.
लोग बदले हालात बदल गये.
बस नही बदली तो बस.
वो एक औरत जो हर हाल में उसके साथ है.
अगर जीवन बदलने से रिश्ते और लोग बदल जाते हैं.
मैंने इन रिश्तो से सीखा है.
लोग सिर्फ मतलब के साथी होते हैं.
‘आकांक्षा पाण्डेय’उपासना
आज़ाद नगर हरदोई(उत्तर प्रदेश)