लघुकथा

फैसला

यूं तो सुखिया के पास उसके नाम के सामान ही सब कुछ हासिल था । घर में मां पत्नी दो बेटे एक सुंदर सी कन्या सोनाक्षी, 2 जोड़ी बैल कुछ बीघा जमीन सर पर अपनी मेहनत से बनाई हुई छत कुल मिलाकर ईश्वर की परम कृपा थी! जीवन के दिन सुख शांति से व्यतीत हो रहे थे!
परंतु पिछले कुछ दिनों से सुखिया की रातों की नींद पूरी तरह उड़ी हुई थी । वह बेटी को लेकर बहुत बेचैन था । आए दिन ताड़ के पेड़ सरीखी बढ़ती जा रही थी उसका रूप चंद्रमा की कलाओं की तरह दिन-ब-दिन बढ़ रहा था । वह अपनी दादी पर गई थी ।सुखिया की मां गांव में सबसे सुंदर औरतों में गिनी जाती थी। वह जिधर से निकल जाती कई जोड़ी आंखें हुक्का गुड़गुड़ाती हुई उसका पीछा करती रहती। सुखिया ने बचपन से ही यह महसूस किया था और अपने बुरे दिनों में इस पीड़ा को झेला भी था वह जानता था गरीब की सुंदरता भी उस पर भारी पड़ती है।
बेटी को देखकर अक्सर उसका दिल बेचैन हो जाता । आजकल तो पाश्चात्य संस्कृति का ही बोलबाला है । हर किसी को आजादी चाहिए वोह पहले जैसे दिन नहीं रहे. सोनाक्षी ने 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर ली है और अब शहर में पड़नें जाने की जिद कर रही! सुखिया निर्णय नहीं कर पा रहा कि अपनी होनहार बेटी को आगे पढ़ने के लिए शहर भेजें कि जमींदार के घर से आए रिशते को स्वीकार कर बेटी की जिम्मेदारी से उन्मुक्त हो जाए!
इसी उधेड़बुन में कब वह सरपंच के घर तक पहुंच गया पता ही न चला। सरपंच जी की तेज आवाज से , ‘आओ सुखिया आओ’ सुनकर उसकी तंद्रा टूटी चौंक कर देखा सामने सरपंच जी गोल तकिया की टेक लगाएं हुक्का गुड़गुड़ाते हुए अपने पास बुला रहे थे।
सुखिया ने झट से नमस्कार किया और चौकी सरकाकर पास ही बैठ गया! जब कभी भी सुखिया किसी परेशानी में होता तो सरपंच जी से ही सलाह मशवरा करता! सरपंच ने हुक्का उसकी तरफ मोड़ते हुए कहा, ‘लो पिओ …कुछ पल सांस लो फिर बताओ क्या परेशानी है’?
इससे पहले कि वह कुछ बोलता भीतर से सरपंच की पत्नी की आवाज आई, “सुनिए …! जल्दी से तैयार हो जाए बिटिया के ससुराल भी जाना है” आज फैसला निपटा कर ही लौटना या तो वह लोग अपनी मांगे खत्म करें या बिटिया को संग लौटा लाना! यह सुनकर शंकित निगाहों से सुखिया ने सरपंच की ओर देखा तो वोह बेहद परेशान लग रहे थे! सुखिया बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ समझ गया ।सरपंच जी बोले, ‘काश मैंने बिटिया की शादी में जल्दी न की होती, कुछ साल और पढ़ने देता वह खुद पर निर्भर होती तो आज सालों की हिम्मत न होती मेरी बेटी को इस तरह प्रताड़ित करने की।’ अच्छी खासी नौकरी मिल रही थी बिरादरी के ड़र से उसे ब्याह कर नरक में झोंक दिया।
यह सुनते ही सुखिया झटके से उठा प्रणाम करके बाहिर की ओर निकल गया। सरपंच जी ने आवाज दी, रूको सुखिया कहो तो तुम क्या कहने आए थे? सुखिया कंधे पर गमछा डालते हुए बोला… “मालिक कुछ नहीं अाप बिटिया के घर हो आएं कहते हुए वह तेज कदमों से घर की ओर बड़ चला।
विजेता सूरी, रमण

विजेता सूरी

विजेता सूरी निवासी जम्मू, पति- श्री रमण कुमार सूरी, दो पुत्र पुष्प और चैतन्य। जन्म दिल्ली में, शिक्षा जम्मू में, एम.ए. हिन्दी, पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक उपाधि, वर्तमान में गृहिणी, रेडियो पर कार्यक्रम, समाचार पत्रों में भी लेख प्रकाशित। जे ऐंड के अकेडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज जम्मू के 'शिराज़ा' से जयपुर की 'माही संदेश' व 'सम्पर्क साहित्य संस्थान' व दिल्ली के 'प्रखर गूंज' से समय समय पर रचनाएं प्रकाशित। सृजन लेख कहानियां छंदमुक्त कविताएं। सांझा काव्य संग्रह कहानी संग्रह प्रकाशित।