“मुक्तक”
“दोहा मुक्तक”
परिणय की बेला मधुर, मधुर गीत संवाद।
शोभा वरमाला मधुर, मधुर मेंहदी हाथ।
सप्तपदी सुर साधना, फेरा जीवन चार-
नवदंपति लाली मधुर, मधुर नगारा नाद॥-1
“मुक्तक” छंद मधुमालती, मापनी – 2212 2212
अहसान चित करते रहो।
पहचान बिन तरते रहो।
कोई पुकारे सड़क महीं-
सुनकर उसे भरते रहो॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी