गीत/नवगीत

“गीत”

मुखड़े व अंतरे का मात्रा भार 22, तुकांत, आना

है बड़ी जालसाजी न सच का ठिकाना।

हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना।।

बात इतनी सुनो यारा दिल न दुखाना

जा रहे तो जाओ पर घहरी न आना।। ….हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना

पाँव घिस जाएगा हुस्न पिट जाएगा

मान घट जाएगा ध्यान बट जाएगा

बाँसुरी से शहद शब्द बहरी न जाना।।….. हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना

खाए जाते कसम पावन गीता लिए

झूठ झलके बगल में पाठ भीता लिए

मोड़ मुड़ने की खातिर न गगरी उठाना।।…..हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना

है गुनाहों की जगहा क्या सुलहा करें

झूठ पर झूठ रखते और जिरहा करें

नइंसाफी बहुत है न जा तिलमिलाना।।…..हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना

हैं वक्ता नए पर वो तख्ता पुराना

इक सी सब सकल अधिवक्ता विराना

जान पहचान वालों को हट के बिठाना।।…..हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना

हाथ डंडा छड़ी है पुलिस ले खड़ी है

लूट लेती अमावस अदालत बड़ी है

नहीं कोई साथी कसम टूट जाना।।…..हो सके तो सनम तुम कचहरी न जाना

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ