“गीतिका”
हौले हौले आ रही, शीतल मंद बहार
पीछे खिड़की के खड़ी, साजन रूप निहार
चंपा कहती सुन सखी, मैं कान्हा की खास
खिली चमेली बाग में, करती पुष्प फुहार॥
ऋतु आकर इठला रही, सकुची कली गुलाब
मानों करना चाहती, फूलों का मनुहार॥
मौसम हर पल झूमता, लेकर अपना रूप
इस डाली उस डाल पर, बैठे करे विहार॥
चंचल होती है लता, सह नहिं पाती धूप
छा जाती चित कोमली, नयना दृश्य निहार॥
यदा-कदा फल बांझ पर, दिखते गूलर फूल
खुशियाँ उसके घर गयी, जिसने किया गुहार॥
गौतम गाए सावनी, झूला झूले डाल
आँगन बिछलाओ सजन, रिमझिम पड़ी फुहार॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी