कविता

कविता – मेरे अंदर का बच्चा

मेरे अंदर का बच्चा
आज भी मौजूद है, जिम्मेदारियों के नीचे

देखकर बच्चे को, दौड़ाते टायर गली में
उड़ाते आसमान में पतंगों की रंगीनियाँ
खुदको उनमें पाता हूँ, अपनी आँखे मीचे

मेरे अंदर का बच्चा…………

रोटी में घी नमक लगा रोल, बनाकर
जब कोई अँगना में घूम-घूम कर खाये
तब भी, जब कोई भागे तितली के पीछे

मेरे अंदर का बच्चा………..

जाने कैसे, जूते थे जो पीं-पीं करके चलते थे
गुड्डे की शादी में बंदर मामा क्यों उछलते थे
बहुतेरे अरमान अधूरे जो आँसुओं से सींचे

मेरे अंदर का बच्चा………..

वो कच्ची पगडण्डी और गलियाँ गाँव की,
मेढ़ याद हैं खेतों की, और मंदिर की घँटी
गोधूलि बेला, बरबस ही अपनी ओर को खींचे

मेरे अंदर का बच्चा………

बहुत याद आता है वो मामी का मनुहार
बुझे चूल्हे को सुलगा, आलू पापड़ भूँजना
याद है, छुपना मेरा नाना की खटिया के नीचे

मेरे अंदर का बच्चा………..

वो भरी दोपहर में, चोरी से अमराई में घुसना
डंडा लेकर दद्दा का जोरों से हमें घुड़कना
चुपके से दे जाते अमियाँ, हमें पीठ के पीछे

मेरे अंदर का बच्चा ………..

पूजा अग्निहोत्री

पूजा अग्निहोत्री

पति का नाम - श्री प्रदीप अग्निहोत्री उपलब्धियाँ - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - थाना रामनगर, काली मन्दिर के पास राजनगर, जिला- अनूपपुर (मध्य प्रदेश) पिन- 484446 मो. 09425464765 ईमेल - [email protected]

2 thoughts on “कविता – मेरे अंदर का बच्चा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर रचना !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर रचना पूजा जी ,बचपन के वोह दिन याद आ गए .

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