जम्मू कश्मीर में राजनैतिक परिवर्तन
जम्मू कश्मीर में तीन साल से चली आ रही महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार अब गिर चुकी है तथा राज्य में राज्यपाल का शासन भी लागू हो चुका है। अब राज्य में आतंकियों व पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की ओर सरकार व सेना ने अपने कदम आगे बढ़ा दिये हैं। भारतीय जनता पार्टी और पीडीपी के बीच राज्य के विकास के साथ विभिन्न नीतियों को लेकर तनाव लगातार बढ़ रहा था और राजनैतिक हलकों में माना जा रहा था कि कश्मीर घाटी के हालात बहुत अधिक खराब होते जा रहे थे, जिसके कारण सरकार चलाना काफी मुश्किल हो गया था। कई ऐसे कारण मौजूद हो गये जिसके बाद बीजेपी का सरकार से अलग हो जाना ही देशहित में रहा। हालांकि वहां पर अभी भी कई सारे विकल्प खुले हुए हैं। लेकिन अब ताजा हालातों में यदि केंद्र सरकार व सेना को मिलकर कश्मीर के हालातों पर नियंत्रण करने के लिये बेहद कड़ी कार्यवाही करनी है तो वहां पर राज्यपाल का शासन ही उचित होगा।
विगत माह से जिस प्रकार से वहां के हालात बिगडे उसके बाद यही उचित रहा कि अब बीजेपी वहां से हट जाये। यदि बीजेपी स्वयं वहां से नहीं हटती तो उसके पास 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद आगामी विधानसभा चुनावों में जनता के पास जाने के लिए कोई जवाब नहीं था। कश्मीर में बिगड़ रहे हालातों के कारण बीजेपी कार्यकर्ता व समर्थकों में काफी निराशा के भाव जाग रहे थे तथा लगातार यह सवाल उठाया जा रहा था कि किसके दबाव में बीजेपी कश्मीर में कड़े कदम क्यों नहीं उठा पा रही है? यह बात बिलकुल सही है कि अब यदि राज्यपाल का शासन लग जाता है तो वहां पर हालातों को सुधारने के लिये केंद्र सरकार सीधा हस्तक्षेप करते हुए कड़े कदम उठा सकती है। केंद्र सरकार व बीजेपी पर राज्य में अलगाववादियों व आतंकवाद के खिलाफ बेहद कड़े एक्शन लेने का दबाव लगातार बढ़ रहा था।
बीजेपी और पीडीपी के बीच कई अहम मुद्दों पर लगातार तनाव बढ़ रहा था। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती लगातार अलगाववादियों, पत्थरबाजों के प्रति बेहद नरम रुख अख्तियार कर रही थीं जबकि बीजेपी का रवैया लगातार कड़े कदम उठाने का रहा है। जब जम्मू कश्मीर में आतंक के खिलाफ आपरेशन आल आउट सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा था तथा घाटी में हिजबुल के पोस्टर बाॅयों का समापन कर दिया गया था और सभी आतंकी संगठन बेहद दबाव में आ गये थे, ठीक उसी समय महबूबा मुफ्ती के दबाव में आकर केंद सरकार ने सीजफायर करने का ऐलान किया। इस सीजफायर का कश्मीर घाटी में विपरीत प्रभाव पड़ा। अब वहां पर पत्थरबाज, अलगावादी संगठन और आतंकवादी संगठन फिर काफी मजबूत हो गये हैं।
रमजान के दौरान तथा सीजफायर के बाद भी भारत विरोधी देशद्रोही तत्वों की गतिविधियां कम नहीं हो पा रहीं थीे अपितु इस दौरान इन तत्वों ने और भी अधिक भयावह तरीकों से वारदातों को अंजाम दिया है। इसी दौरान यूएन की एक रिपोर्ट भी भारत सरकार के खिलाफ आ गयी, जिससे भारत सरकार बेहद नाराज है। वहीं दूसरी ओर रमजान के दौरान पत्थरबाजों व आतंकवादियों ने एक माह में 66 से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया है। माना जा रहा है कि रमजान के पवित्र माह के समापन के बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आपरेशन आल आउट फिर से शुरू करने का जो दिशा निर्देश सेना व सुरक्षा एजेंसियों को फिर से दिया है वह मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को रास नहीं आ रहा था।
कहा जा रहा है कि आपरेशन आल आउट को दोबारा शुरू करने के लिए कश्मीर के इतिहास में वहां पर भारी संख्या में सेना व अर्धसैनिक बलों की मौजूदगी है लेकिन महबूबा की सरकार सेना को अपना मूवमेंट शुरू करने की इजाजत नहीं दे रही थी। यही कारण है कि बीजेपी को कश्मीर में अपनी ही सरकार को दांव पर लगाना पड़ गया है। अब यहां पर बीजेपी बचाव की मुद्रा में आ गयी है तथा यदि एक साल बाद वहां पर आतंकवाद के खिलाफ कड़े ऐक्शन के बाद चुनाव होते हैं तब बीजेपी के पास जनता के पास जाने के लिये कुछ मुद्दा भी रहेगा।
माना जा रहा है कि संघर्ष विराम को समाप्त करने के फैसले को लेकर महबूबा इतनी अधिक नाराज थीं कि वह स्वयं इस्तीफा देने की योजना बना रहीं थीं, लेकिन केंद्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मुलाकात के दौरान ही तय हो गया था कि केंद्र सरकार व बीजेपी कश्मीर के हितों को ध्यान में रखते हुए कोई बड़ा एवं कड़ा कदम उठाने जा रही है। इस बैठक में सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कश्मीर के बेहद खराब हो रहे हालातों की जानकारी दी और भविष्य की योजना भी बतायी जिसके बाद यह राजनैतिक मजबूरी का गठबंधन समाप्त हो गया है। अब उसके बाद के राजनैतिक हालातों पर नजर रखी जा रही है।
बीजेपी प्रवक्ता राम माधव ने अपनी प्रेस वार्ता के दौरान समस्त घटनाक्रम और विभिन्न कारणों की जानकारी देते हुए बताया कि विगत विधानसभा चुनावों में राज्य में बेहद खंडित जनादेश आया था और जिसमें जम्मू संभाग में बीजेपी और घाटी में पीडीपी को जनादेश मिला था लेकिन पूरे राज्य में खंडित जनादेश आया था। तब हमने राज्य में राजनैतिक अस्थिरता से बचने के लिये तथा राज्य के विकास को गति देने और शांति की स्थापना के लिये राज्य में गठबंधन सरकार का गठन किया था। लेकिन अब विगत तीन वर्षो में हालात बद से बदतर हो गये हंै। अब हम लोगों का साथ चलना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। हमने समर्थन वापसी से पहले सुरक्षा सलाहकार व सभी सुरक्षा एजेंसियों से लम्बे विचार विमर्श के बाद यह फैसला लिया है। आज कश्मीर घाटी के हालात वास्तव में बेहद खराब हो गये हैं। जम्मू लददाख और घाटी के बीच तनाव और दूरियां लगातार बढ़ रही हैं। विगत तीन सालों में राज्य के विकास तथा शांति के लिये हमने सभी कदम उठाये। घाटी के विकास और अन्य कामों के लिये 18 हजार करोड़ वित्तीय सहायता दी गयी है।
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जिस प्रकार की सहायता मांगी वह सब कुछ किया गया लेकिन अब हालात लगातार खराब होते ही जा रहे थे। घाटी में जिस प्रकार से पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की गयी वह निंदनीय है। रमजान के पवित्र माह में ईद की छुट्टियां मनाने के लिये घर आये जवान औरंगजेब का अपहरण करने के बाद आतंकियों ने उनकी निर्मम हत्या कर दी। जिसके बाद घाटी में जबर्दस्त उबाल आ रहा है तथा आतंकवाद को समूल नाश करने के लिये कड़े कदम उठाने की मांग लगातार जोर पकड़ रही थी। अभी सेना प्रमुख ने शहीद औरंगजेब के परिजनों से मुलाकात करके उनको पूरा भरोसा दिलाया है। पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या पर बीजेपी प्रवक्ता का कहना है कि राज्य में अभिव्र्यिक्त की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी का भी गला घोटा जा रहा है।
राज्य सरकार में बीजेपी कोटे के मंत्रियों के विभागों में महबूबा सरकार काम नहीं होने दे रहीं थीं। कश्मीर घाटी में सुरक्षा एजेंसियों की सलाह को दरकिनार करते हुए महबूबा सरकार पत्थरबाजों को ख्ुाली छूट दे रही थीं, इसके विपरीत सेना के जवानों पर ही एफआईआर दर्ज हो रहीं थीं। अभी ईद की नमाज के बाद ही पत्थरबाजों ने सुरक्षाबलों पर जमकर पत्थरबाजी की थी और उनके हौसले इतने बुलंद हो गये थे कि वह वहां पर पाकिस्तान व आइएसआईएस के झंडे भी फहराने लगे थे। सीजफायर के दौरान एक माह में 66 से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया गया।
सीजफायर के पहले कठुआ गैंगरेप व मर्डर कांड एक बहुत बड़ा मुददा पूरे देशभर में छा गया था। इस प्रकरण पर भी बीजेपी और पीडीपी की राय अलग-अलग थी। बीजेपी पूरे मामले को सीबीआई जांच के दायरे में लाना चाहती थी लेकिन पीडीपी ने ऐसा नहीं किया। इस मामले पर पूरे देशभर में राजनीति की गयी थी और देश के तथाकथित मोदी विरोधी बुद्धिजीवियों ने मोमबत्ती जलाकर केंद्र सरकार की साख पर गहरा आघात करने की साजिशें रच डाली थीं तथा उसमें कुछ हद तक सफल भी रहे थे। यहां तक कि यह मामला यूएन तक चला गया था। कठुआ कांड के दौरान हिंदू जनमानस की छवि को गहरा आघात पहुंचाने की कोशिशें की गयीें।
साथ ही सीजफायर से उत्पन्न परिस्थितियों के बाद अब पूरा देश पीएम नरेंद्र मोदी से जवाब मांगने लग गया था कि आखिर कब तक हमारे देश के जवानों, पत्रकारों की हत्या होती रहेगी। कश्मीर को लेकर सरकार की मंशा पर ही सवालिया निशान उठने लग गये थे तथा यह भी कहा जाने लगा था कि भारत सरकार के पास कश्मीर को लेकर कोई रणनीति है भी या नहीं लेकिन आज यह कदम उठा लिया गया है और संकेत भी मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में तथा राज्य में विधानसभा चुनावों में उतरने से पहले आतंकवादियों व अलगाववादियों के खिलाफ बहुत बड़ा ऐक्शन लिया जाने वाला है।
जम्मू कश्मीर में आगामी 28 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने जा रही है। खुफिया एजेंसियों को गोपरीय सूचनायें मिल रही हैं कि इस बार आतंकवादी काफी बड़े पैमाने पर पत्थरबाजों व अलगाववादियों के साथ मिलकर बड़ी वारदातों को अंजाम दे सकते हैं। सीमा पर बड़ी संख्या में आतंकवादी घुसपैठ की फिराक में बैठे ंहै। आतंकी संगठनों के नेता सेना के जवानों पर बड़े हमले करने की लगातार धमकियां दे रहे हैं। वर्तमान हालातों में भारतीय सेना की ओर से कुछ और बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक को भी अंजाम दिया जा सकता है।
— मृत्युंजय दीक्षित