मुक्तक/दोहा

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर प्रस्तुत “दोहा”

भोर हुई निकलो सजन, महके बगिया फूल।

हाथ पाँव झटकार लो, आलस जाओ भूल।।-1

रात देर तक जागते, दिन भर घोड़ा बेंच।

सोते हो तुम देर तक, अब तो चादर खेंच।।-2

ऋषियों की यह देन है, दुनिया करती योग।

बिन हर्रे बिन फिटकरी, भागे सगरो रोग।।-3

ऋषियों की अद्भुत छटा,, देखो उनके केश।

जप तप साधक साधना, ऐसा भारत देश।।-4

योगी का बल योग है, भोगी भूला भान।

बिना योग काया व्यथित, आलस रोगी मान।।-5

पहर दो पहर शाम को, जब हो समय सुयोग।

उठक बैठक स्वांस भरो, छोड़ो बाहर रोग।।-6

निर्मल जल भोजन पके, पीओ जल भरपूर।

चबा चबा के दाँत से, खाओ सखा खजूर।।-7

रगड़ रगड़ के हाथ मुँह, दातुन कड़वी नीम।

नहलाओ मालिश करो, दौड़ो बनो हकीम।।-8

गैया करती पागुरी, बछवा भरे गुलाट।

बैल जुवाठा कांध पर, पोछे कहाँ ललाट।।-9

जीव जंतु करते सभी, अपने माफक योग।

घोड़ा सरपट दौड़ता, रहता सदा निरोग।।-10

शुभकामना अनेक है, प्रति दिन करना योग।

अति उत्साहित एक दिन, हो जाते हैं लोग।।-11

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ