कविता

पी रही हूँ

पी ही हूँ
गरल की तरह
कर आत्मा का हनन
बरस रहा है
आज फिर आसमां से
पानी में मिला वो
निकल चिमनियों के मुख से
मिल गया प्राणदायनी के साथ जो

पी रही हूँ
आज अमृत समझ जिसे
बन कैन्सर का सिस्ट
उभरेगा फिर
मेरे किसी अंग में
खत्म होती संवेदनाओं सा
बन जायेगा भार
रिश्तों की तरह

नहीं पीना चाहती
पर मजबूरी है मेरी
न साफ है
अब मोक्षदायनी भी
फैक्टरी से निकले अवशेषों से
पर पी लूंगी अमृत समझ कर ही
मोक्ष तो हर हाल में तय है।

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान