कविता

काल – चक्र

अपनी बढ़ती स्वार्थवृत्ति पर लगा अंकुश
निश्चित ही तेरा निज तन-मन होगा खुश
संचित – संपत्ति रख सदा पावन – पवित्र
महाकाल  की  दृष्टि  यहाँ – वहाँ सर्वत्र
झूूंठ-कपट-छल कब तक साथ निभायेगा
एक -न- एक दिन यम के चाबुक खायेगा
व्यसन  –  प्रदर्शन  में   नित   लिप्त  रहा
आनी – जानी  माया  का  क्यों  दास रहा
यहाँ  राजा  –  जमींदार   सब  मिट  गये
तेरे  जैसे  कितने  आये  और  चले  गये
काल – चक्र  से  कहीं नहीं कोई बच पाया
सद्ग्रंथो ने मनुज को शुरू से ही समझाया

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111