कविता

इंतज़ार

इक कुर्सी और खिड़की
जैसे ज़िन्दगी सिमट के रह गयी थी वहीं
जीवन की सांझ
न खत्म होता इंतज़ार
इंतज़ार भी अपने दिल के टुकड़ों का
जो दिल मे रहते है मगर
नज़रों से कोसों दूर
ज़िन्दगी सिमट के रह गयी थी
इक कुर्सी और खिड़की
जीवन की सांझ ….
खिड़की के पुराना कांच…
मेरी आँखें भी धुंधला गयी सी
फिर जाने क्या देख पाती थी
वो बाहर
शायद वो वहां बैठ कर बाहर नही
अतीत में झांकती है
खुद के भीतर देखती है…

सुमन “रूहानी”

सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

मेरा जन्मस्थान जिला पाली राजस्थान है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। शादी के पश्चात पिछले 25 वर्षों से मैं सूरत गुजरात मे रह रही हुँ । मैंने अजमेर यूनिवर्सिटी से 1993 में m. com किया था ..2012 से यानि पिछले 6 वर्षों कविताओं और रंगों द्वारा अपने मन के विचारों को दूसरों तक पहुचने का प्रयास कर रही हुँ। पता- A29, घनश्याम बंगला, इन्द्रलोक काम्प्लेक्स, पिपलोद, सूरत 395007 मो- 9227935630