कंजूसी
रामलाल ने जैसे ही घर में प्रवेश किया हॉल में चल रहे दोनों पंखों को चलते और झूमर में लगी तेज लाइट को को जलते देखकर चिल्ला उठे ,” कमला ! अरे ! कहाँ हो कमला ? हॉल में कोई नहीं और फिर भी दोनों पंखे और लाइट चालू हैं । कितना बिल आएगा पता है ? “
” पापा ! ऐसी भी क्या कंजूसी ? आप तो अब बस आराम कीजिये । फिक्र करने के लिए अब हम लोग हैं न ! ” छोटा बेटा समीर हॉल में आते हुए बोला ।
तभी पीछे से हॉल की तरफ आती हुई कमला देवी बोल पड़ीं ,” कैसी बातें कर रहे हो बेटा ? जब तुम्हारे पापा तुम्हें अच्छे से अच्छा कपड़े , अच्छे से अच्छा खिलौने , खाना , रहना , शिक्षा के लिए पैसे खर्च करते थे तब तुम्हें कोई कंजूसी नजर आई ? आज जब वो फिजूलखर्ची छोड़कर तुम लोगों को कोई सही नसीहत दे रहे हैं तो तुम्हें इसमें उनकी कंजूसी नजर आ रही है ? माना कि अब तुम दोनों बहुत बढ़िया कमा रहे हो । पैसे की कोई कमी नहीं है लेकिन ये फिजूलखर्ची की आदत वैसी ही है जैसे किसी घड़े में छेद होना । चाहे जितना पानी भरते रहो , घड़ा खाली का खाली ही रहेगा । “
अछि शिक्षा ,बात कंजूसी की नहीं , बात समझ की है .बहुत अछि लघु कथा राजकुमार भाई .