दोराहा
” अरे भागवान ! सुनती हो ! बहू के पिताजी का फोन आया था । कह रहे थे कल आएंगे । बहू की बिदाई करनी होगी । ” रामलाल ने ऊंची आवाज में अपनी पत्नी कमला देवी से कहा ।
” यह तो अच्छी बात है । रजनी हमारी बहू होने से पहले उनकी बेटी भी तो है सो उनका भी हक़ बनता है उसपर । ” कमला देवी अंदर के कमरे से बाहर बरामदे में बैठे रामलाल जी की तरफ बढ़ते हुए बोलीं ।
परदे के पीछे खड़ी रामलाल की नई नवेली बहू रजनी उनकी बातें सुनकर खुशी से उछल पड़ी । पंद्रह दिन हो चुके थे उसकी शादी को । अब उसका मन यहां रमने लगा था कि पिताजी का जिक्र सुनते ही पल भर में मैके की गलियां , सखियां व पास पड़ोस के लोगों सहित माता पिता के चेहरे भी उसकी आँखों के सामने घूम गए और खुशी से चहकते हुए वह जैसे ही अपने कमरे की तरफ बढ़ी सामने खड़े अपने पति अमर को देखकर सहज हो गई । अमर के चेहरे पर छाई खामोशी के बीच जबरदस्ती मुस्कुराने का प्रयास करना रजनी को साफ नजर आ रहा था । पति के खामोश चेहरे के पीछे छिपे दर्द को पहचानकर वह असहज हो गई । पति के दुलार व प्यार के साथ ही उसे याद आ गया कमलादेवी व रामलाल का वात्सल्य भरा संबोधन व स्नेह ! वह खुद को सौभाग्यशाली समझ रही थी इतना प्यार करनेवाला पति और माता पिता जैसे सास ससुर पाकर ।
कुछ देर वह खड़ी कशमकश में रही कि क्या करे ? एक तरफ माता पिता से मिलने की उमंग तो दूसरी तरफ अपने घर से और जान छिड़कने वाले पति के प्यार से वंचित होने का गम ? क्या करे वह ? भगवान हर बेटी को ऐसे दोराहे पर क्यों खड़ा कर देता है जहां से उसे अपने लिए किसी एक रास्ते का चुनाव बहुत मुश्किल हो जाता है ?
कुछ देर बाद वह उठी और अपने बैग पैक कर तैयारी करने लगी मायके जाने की……!
अगर समझदारी हो तो दोनों परिवार स्वर्ग से सुन्दर बन जाता है, वरना आजकल तो जानते ही हैं.
सच में राजकुमार भाई, हम को याद है पहले पहले जब बेतीआं हमारे यहाँ आती थीं तो जाते वक्त रोया करती थीं .हम भी रोते थे .लड़किओं के लिए यह बहुत मुश्किल होता है . इसी लिए हम अपनी बहु को बकायदा कहते रहते हैं की वोह अपने माता पिता से मिल आयें .वोह हंस कर कहती हैं, डैडी, अभी एक माहीना ही तो हुआ है वहां गई को . इतने पर वोह खुश हो जाती है . हमारी सोच अछि होनी चाहिए .