लघुकथा

बाँझ

अपने झोंपड़े के सामने बैठी परबतिया की नजर जैसे ही सामने से आ रही कमली पर पड़ी , वह चौंक गई थी उसकी गोद में एक छह महीने के नवजात बच्चे को देखकर !
अभी दो साल पहले तक कमली उसकी बहू उसके साथ ही रहती थी लेकिन शादी के पांच साल बाद तक भी खुशखबरी ना देने की वजह से वह उसे बाँझ कहकर उसे ताने मारती , और इसी मुद्दे पर अक्सर सास बहू में तू तू मैं मैं भी होती । रोज के तानों से तंग आकर एक दिन कमली घर छोड़कर चली गई थी और इतने दिनों बाद वह उसे आज दिखाई पड़ रही थी वह भी एक नवजात के साथ ।
कमली ने परबतिया को बताया घर से निकलकर वह नदी में कूदकर खुदकुशी करने ही वाली थी कि तभी एक मछुआरे ने उसे बचा लिया और अपने घर ले गया । वह उसकी चार साल की बिन माँ की बच्ची के मोह में ऐसी रम गई कि फिर उसी मछुआरे की होकर रह गई । यह उसी का बेटा था । आज वह उसे यही दिखाने आई थी कि वह बाँझ नहीं थी । अपनी रामकहानी सुनाकर कमली ने बच्चे को गोद में उठाया और निकल पड़ी अपने नए घर की ओर …..!

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।