“मुक्तक”
छंद–दिग्पाल (मापनी युक्त) मापनी -221 2122 221 2122
जब गीत मीत गाए, मन काग बोल भाए।
विरहन बनी हूँ सखियाँ, जीय मोर डोल जाए।
साजन कहाँ छुपे हो, ले फाग रंग अबिरा-
ऋतुराज बौर महके, मधुमास घोल जाए॥-1
आओ न सजन मेरे, कोयल कसक रही है।
पीत सरसो फुलाए, फलियाँ लटक रही है।
महुवा मलक रहें हैं, भौंरा मचल रहें हैं-
होली हवा चली है, पुरुवा पटक रही है॥-2
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी