कविता

आपातकाल

सोचो कैसे तब वो दिन थे
गुजरा वो हर क्षण गिन गिन के
कुछ बोल नही तब पाते थे
कुछ लिखने से घबराते थे
था लोकतंत्र शरशय्या पर
वो उतरे ,उसकी हत्या पर

क्या पंचशील से पाया कह
क्यों भारत को लुटवाया कह
जब मानसरोवर खोया था
पूरा भारत ही रोया था
हर भारतवासी लाश हुआ
जब हाथो से कैलाश गया

हां , देश समूचा रोता था
देखा शिमला समझौता था
जीती भूमी  भी लौटायी
अपनी इक इंच नहीं पायी
लेकिन हमने दिखलाई दया
क्यो,उन सब को ही माफ़ किया

हर बार विजय क्यों सौत हुई
क्यों ? ताशकंद में मौत हुई
है , प्रश्न नहीं क्यों भूमी ली
क्यों त्याग दया की धूनी ली
इसमें गहरा कुछ राज  छिपा
ऐसे वर्षो तक ताज बचा

घर में विरोध जब गहराया
जब भारत को समझ आया
था जोश रक्त के कतरे में
तब देख तख़्त को खतरे में
गद्दी से उनका प्यार जगा
भारत में आपत काल लगा

 

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.