लोकतन्त्र का काला दिन
आज से ४३ वर्ष पूर्व आज के ही दिन कांग्रेस की तथाकथित महानतम नेत्री इन्दिरा गाँधी द्वारा देश पर इमर्जेन्सी थोपकर लोकतन्त्र की हत्या की गई थी। वे राय बरेली से लोकसभा का चुनाव लड़ी थीं और विजयी भी हुई थीं लेकिन चुनाव में जमकर सरकारी साधनों और अधिकारियों का दुरुपयोग किया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में यह आरोप प्रमाणित भी हो गया और इसके आधार पर हाई कोर्ट ने इन्दिरा गाँधी के चुनाव को अवैध घोषित करते हुए छ: साल तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। उन दिनों लोक नायक जय प्रकाश नारायण का जन आन्दोलन चरम पर था। इन्दिरा गांधी की कुर्सी खतरे में पड़ गई थी। देश के हर कोने से उनके त्यागपत्र की मांग जोरों से उठने लगी थी। शालीनता से इस्तीफा देने के बदले इन्दिरा गांधी ने सत्ता और संविधान का दुरुपयोग करते हुए आपात्काल की घोषणा कर दी और जनता के सारे मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रहार — इमर्जेन्सी की सबसे अधिक गाज पहले दिन से ही पत्रकारों और समाचार पत्रों पर गिरी। अभिव्यक्ति की आज़ादी पूरी तरह छीन ली गई। समाचार छापने के पूर्व सरकार द्वारा गठित समिति से छापने का अनुमोदन लेना अनिवार्य कर दिया गया। विरोध में कुछ समाचार पत्रों ने सारे पृष्ठ काली स्याही से रंग दिए और कोई समाचार छापा ही नहीं। परिणाम स्वरूप पत्रकार भी गिरफ़्तार हुए। इमर्जेन्सी के दौरान वही पत्रकार बाहर रहे जो इन्दिरा गांधी का गुणगान करते रहे। Illustrated Weekly के संपादक खुशवन्त सिंह ने युवराज संजय गांधी को Man of the year घोषित किया और वे मलाई खाते रहे। कुलदीप नायर ने विरोध किया और उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
विपक्षी दलों पर प्रहार– सभी विपक्षी दल — जनसंघ से लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सारे छोटे-बड़े नेताओं को रातो-रात गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। स्व. जय प्रकाश नारायण, मोररजी देसाई, चन्द्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवानी, चरण सिंह, पीलू मोदी जैसे राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ़्तार करके अज्ञात जेलों में डाल दिया गया। RSS पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तथा इसके छोटे से छोटे कार्यकर्त्ता से लेकर सरसंघचालक तक को जेल में डाल दिया गया। इन्दिरा गांधी ने RSS से अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए स्वयंसेवकों को ठीक उसी तरह की यातनायें दीं जिस तरह कि यातनायें वीर सावरकर को अंडमान जेल में दी गई थीं। थाने में उनसे नानाजी देशमुख और रज्जू भैया के ठिकाने पूछे जाते और नहीं बताने पर नाखून उखाड़ लिए जाते। कई स्वयंसेवकों को अपना ही मूत्र पीने के लिए विवश किया गया। जय प्रकाश नारायण जैसे नेता को जेल में इतनी यातना दी गई कि उनके गुर्दे खराब हो गए। १९७७ में रिहाई के बाद भी वे स्वस्थ नहीं हुए और कुछ ही समय के बाद परलोक सिधार गए। पश्चिम बंगाल में सैकड़ों CPM कार्यकर्ताओं को नक्सली बताकर गोली मार दी गई। बारातियों से भरी बस को रोककर सभी बारातियों की जबर्दस्ती नसबन्दी कराई गई। चूंकि सारे मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे अतः विरोध में लिखना या बोलना जेल जाने के लिए पर्याप्त से ज्यादा था। सिर्फ RSS के भूमिगत कार्यकर्ताओं के प्रयास से कुछ लघु समाचार पत्र सीमित संख्या में गुप्त रूप से जनता तक पहुँचते थे जिनमें सही समाचारों का उल्लेख रहता था। इन पत्रों में ‘रणभेरी’, ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘लोकसमाचार’ उल्लेखनीय थे। देश के हर कोने में वहां की भाषा में ऐसे लघु समाचार पत्र गुप्त रूप से निकलते रहते थे, जिनकी जनता बेसब्री से इन्तजार करती थी। आकाशवाणी इन्दिरा का भोंपू बन गया था और अखबार २० सूत्री कार्यक्रम के विज्ञापन। संजय गांधी और इन्दिरा गांधी के चित्रों से अखबार पटे रहते थे। BBC सुनना प्रतिबन्धित था। BBC सुनने की शिकायत पर जेल जाना तय था। अपने जमाने के बेहद लोकप्रिय नेता जार्ज फर्नांडिस पर फर्जी डायनामाइट केस कायम कर उन्हें देशद्रोह के अपराध में गिरफ़्तार किया गया। विरोधियों को प्रताड़ित करने में इन्दिरा गांधी ने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया
संविधान पर हमला — इमर्जेन्सी में विपक्ष के सारे नेता, सांसद और विधायक जेल में थे। इन्दिरा गांधी ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए संविधान में मनचाहे संशोधन किये। यहां तक कि संविधान की प्रस्तावना (Preamble) भी बदल दी गई।
न्यायपालिका पर हमला — इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज श्री जग मोहन लाल ने इन्दिरा गांधी के खिलाफ फैसला दिया था। उन्हें तत्काल गुजरात हाई कोर्ट में स्थानान्तरित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों की वरिष्ठता को नज़र अन्दाज़ करते हुए श्री ए. के. रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया जिनके माध्यम से इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को पलटा गया और इन्दिरा गांधी के पक्ष में निर्णय कराया गया जिससे उनकी संसद में सदस्यता कायम रह सकी। MISA और DIR जैसे बदनाम कानून बनाए गए जिसके आधार पर किसी को कभी भी, कहीं से भी बिना कारण बताए गिरफ़्तार करके जेल भेजा जा सकता था। MISA में तो जमानत भी नहीं मिलती थी। भारत के तात्कालीन एटार्नी जेनेरल ने कहा था कि इमर्जेन्सी के दौरान किसी को भी संदेह के आधार पर गोली मारी जा सकती है। पूरा भारत कारागार में परिवर्तित हो गया था।
सेना प्रमुखों के साथ दुर्व्यवहार — उस समय बंसी लाल देश के रक्षा मंत्री थे। मुंबई में तीनों सेना प्रमुखों की एक महत्त्वपूर्ण बैठक बुलाई गई थी जिसमें बंसी लाल जी को शामिल होना था। वे बैठक में संजय गांधी के साथ पहुंचे। संजय गांधी के पास कोई सरकारी जिम्मेदारी नहीं थी। प्रोटोकाल के अनुसार उस बैठक में सिर्फ रक्षा मंत्री शामिल हो सकते थे। सेना प्रमुखों ने संजय गांधी को बाहर जाकर प्रतीक्षा करने की सलाह दी। इसपर वे आग बबूला हो गए और सेना प्रमुखों के साथ अभद्र व्यवहार करते हुए गाली तक दे दी। बैठक रद्द कर दी गई और संजय गांधी को बन्सी लाल के साथ एक कमरे में बंद कर दिया गया। सेना प्रमुखों ने सभी मुख्यालयों को किसी भी अप्रिय घटना के लिए तैयार रहने के निर्देश भी जारी कर दिए। इतने में इन्दिराजी के किसी वफ़ादार ने उन्हें सूचना दे दी। वे एक विशेष विमान से मुंबई पहुंची और सेना प्रमुखों से मिलीं। उन्होंने संजय गांधी के कृत्यों के लिए स्वयं माफ़ी मांगी और किसी तरह अनहोनी को टाला। दिल्ली पहुंचकर उन्होंने बंसी लाल को पदमुक्त कर दिया। श्री कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘The judgement’ में इस घटना का विस्तार से वर्णन किया है।
इन्दिरा गांधी के परिवार के DNA में तानाशाही है। जब यह परिवार सत्ता में रहता है, तो देश पर तानाशाही थोपता है और बाहर रहता है तो अपनी ही पार्टी पर तानाशाही थोपता है। वित्त मन्त्री अरुण जेटली ने इमर्जेन्सी देखी भी है और जेल में रहकर भोगी भी है। अत: उनका कथन कि इन्दिरा गांधी और हिटलर में कोई फर्क नहीं है, शत प्रतिशत सत्य है।
अच्छी जानकारी. हम भी उन दिनों आगरा में लोक संघर्ष समिति द्वारा छापे गए भूमिगत साप्ताहिक समाचारपत्र गुप्त रूप से वितरित करते थे.