मैं पीने को तो समंदर भी उठा लाता
तेरी निगाहों से क्यों रिहाई नहीं मुझे
महफ़िल झूम उठा है तेरी झलक से
वो तस्वीर तेरी क्यों दिखाई नहीं मुझे
वो नज़्म तेरे ही गाके मशहूर हो गया
दिलकश तराने क्यों सुनाई नहीं मुझे
चर्चे थे हमारे ही नाम के ज़माने में
ये राज़ कभी भी क्यों बताई नहीं मुझे
मैं तो बीमार हूँ बस तेरे ही इश्क़ का
मयस्सर होंठों की क्यों दवाई नहीं मुझे
— सलिल सरोज