देव दयानन्द
घनघोर तिमिर फैला था भारत भू पर
घर – घर में बसा था झूठा आडम्बर
तब भारत भू पे एक किरण आशा की आई
उसने अज्ञान – अंधेरे वाली रात मिटाई
लिख सत्यार्थ प्रकाश जग का उपकार किया
फिर इस जग ने उस ज्ञानवीर को क्या दिया
पीकर जहर के कड़वे घूंट देव दयानन्द
स्वयं दबा के हृदयपीडा, दिया शस्त्रु आनन्द
जाते – जाते स्वराज्य का बिगुल बजा गये
आजाद भगत सिंह से भारत को वीर दे गये
शत-शत नमन हमारा देवों के देव हे दयानन्द
हम पर है उपकार तुम्हारा हे देव दयानन्द
ऋषि दयानन्द जी पर सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद्। सादर।
बहुत सुंदर कविता . बधाई .