गीतिका/ग़ज़ल

आपको तो दिल जलाना आ गया

जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।

क़ाफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्ज़िदों में सर झुकाना आ गया ।।

दे गयी बस इल्म इतना मुफ़लिसी ।
दोस्तों को आज़माना आ गया ।।

एक आवारा सा बादल देखकर ।
आज मौसम आशिक़ाना आ गया ।।

क्या उन्हें तन्हाइयां डसने लगीं ।
बा अदब वादा निभाना आ गया ।।

नज़्म जब लिखने चली मेरी क़लम ।
याद फिर तेरा फ़साना आ गया ।।

उठ गया पर्दा जो मेरे इश्क़ से ।
बीच में सारा ज़माना आ गया ।।

जब मयस्सर हो गईं रातें सियाह ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।

मुस्कुराता चाँद जब निकला कोई ।
गीत मुझको गुनगुनाना आ गया ।।

हो गए घायल हजारों दिल यहाँ ।
वार उसको क़ातिलाना आ गया ।।

तिश्नगी देती है कुछ मजबूरियां ।
अब उन्हें चिलमन हटाना आ गया ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]