आपको तो दिल जलाना आ गया
जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।
क़ाफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्ज़िदों में सर झुकाना आ गया ।।
दे गयी बस इल्म इतना मुफ़लिसी ।
दोस्तों को आज़माना आ गया ।।
एक आवारा सा बादल देखकर ।
आज मौसम आशिक़ाना आ गया ।।
क्या उन्हें तन्हाइयां डसने लगीं ।
बा अदब वादा निभाना आ गया ।।
नज़्म जब लिखने चली मेरी क़लम ।
याद फिर तेरा फ़साना आ गया ।।
उठ गया पर्दा जो मेरे इश्क़ से ।
बीच में सारा ज़माना आ गया ।।
जब मयस्सर हो गईं रातें सियाह ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।
मुस्कुराता चाँद जब निकला कोई ।
गीत मुझको गुनगुनाना आ गया ।।
हो गए घायल हजारों दिल यहाँ ।
वार उसको क़ातिलाना आ गया ।।
तिश्नगी देती है कुछ मजबूरियां ।
अब उन्हें चिलमन हटाना आ गया ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी