“मुक्तक”
अस्त-व्यस्त गिरने लगी, पहली बारिश बूँद।
मानों कहना चाहती, मत सो आँखें मूँद।
अभी वक्त है जाग जा, मेरे चतुर सुजान-
जेठ असाढ़ी सावनी, भादों जमे फफूँद॥-1
याद रखना हर घड़ी उस यार का।
जिसने दिया जीवन तुम्हें है प्यार का।
हर घड़ी आँखें बिछाए तकती रहती-
है माँ बहन बेटी न भार्या पारका॥-2
(पारका-पराया)
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी