“दिग्पाल छंद”
मापनी- 2212 122, 2122 122
जब गीत मीत गाए, मन काग बोल भाए
विरहन बनी हूँ सखियाँ, जीय मोर डोल जाए
साजन कहाँ छुपे हो, ले राग रंग अबिरा
ऋतुराज बौर महके, मधुमास घोल जाए।।
आओ न सजन मेरे, कोयल कसक रही है
पीत सरसो फुलाए, फलियाँ लटक रहीं है
दादुर दरश दिखाए, मनमोहना कहाँ हो
पपिहा तरस रहा है, महुवा मलक रही है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी