गज़ल – ये किसी शायर की खुशनुमा शायरी नहीं
गुनहगारों का गुनाह क्या असर लाता है
कि सारा शहर ही बियाबां नज़र आता है
जो कदम गई यहाँ से वो धूल बनके लौटी
वो गाँव टूटी टहनी वाला शज़र कहाता है
जो बेटा गया तो माँ ताउम्र सो ही न सकी
सिरहाने के भीगे तकिए का बसर बताता है
गेहूँ, धान,मक्का,चना सब दफ़्न हो गए
मिट्टी हुई ज़हर तो खेत अब बंजर दिखाता है
ये किसी शायर की खुशनुमा शायरी नहीं
जो आपबीती है “सलिल”वही मंज़र सुनाता है
— सलिल सरोज