गीत – मैं कोई भगवान नहीं हूँ !
मुझमें अवगुण भी संभव हैं, मैं कोई भगवान नही हूँ !
उगकर, सूरज भी ढलता है ।
सुख के संग दुख भी पलता है।
वक्त हमेशा चलता ,लेकिन-
भला एक सा कब चलता है ?
मैं अतीत के दाग मिटा दूँ,ऐसा भी गुणवान नही हूँ!
मुझमें अवगुण…………………..
मधुवक्ता कोयल काली है ।
औषधि तिक्त स्वाद वाली है।
हाय सुकोमल पुष्प दलों संग,
काँटो की क्यों रखवाली हैं ?
मैं जगती के नियम तोड़ दूँ,ऐसा भी बलवान नही हूँ !
मुझमें अवगुण……………….
यह जग नित गतिमान रहा है ।
लेकिन कहाँ समान रहा है ?
कहीं हुई है निशा घनेरी ,
कहीं धवल दिनमान रहा है ।
मैं क्या हूँ,यह जग क्या जाने ,मैं कोई अनुमान नही हूँ!
मुझमें अवगुण भी ……………………………..