गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

मापनी-2122 212, 2122 212, समांत- आर, पदांत- की

गर इजाजत मिल गई, नयन से सरकार की

कब खिलाफत हो सकी, वचन सुन इजहार की

जब मिले दो दिल कभी, समय उठ कहने लगा

खिल रही उपवन कली, चमन के रखवार की॥

क्या हुआ क्यों हर गली, में उठा भूचाल है

बह रही दरिया शहर, नाव बिन पतवार की॥

रुक सका क्या काफिला, चल पड़ा जब पाँव ले

जल गए कितने महल, मनन किस घरबार की॥

बुझ सकी है आग क्या, यदि लपट में तेज हो

उठ रहा हो जब धुआं, यतन तब उपचार की॥

सीख देना और को, यह बहुत आसान है

पढ़ पढ़ाना आदमी, पवन जब इकरार की॥

देख लो गौतम फरक, जब नजर में आ गई

रुक गई चलती डगर, गमन थी तकरार की॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ